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गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका                        मई- 2012




                            NON PROFIT PUBLICATION .
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                                      E CIRCULAR
                          गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका मई 2012
िंपादक                सिंतन जोशी
                      गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग

िंपका                 गुरुत्व कार्ाालर्
                      92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                      BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन                   91+9338213418, 91+9238328785,
                      gurutva.karyalay@gmail.com,
ईमेल                  gurutva_karyalay@yahoo.in,

                      http://gk.yolasite.com/
वेब                   http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

पत्रिका प्रस्तुसत     सिंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
फोटो ग्राफफक्ि        सिंतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हमारे मुख्र् िहर्ोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक िोफ्टे क इस्डिर्ा सल)




            ई- जडम पत्रिका                       E HOROSCOPE
      अत्र्ाधुसनक ज्र्ोसतष पद्धसत द्वारा            Create By Advanced
         उत्कृ ष्ट भत्रवष्र्वाणी क िाथ
                                  े                      Astrology
                                                    Excellent Prediction
              १००+ पेज मं प्रस्तुत                      100+ Pages
                          फहं दी/ English मं मूल्र् माि 750/-

                               GURUTVA KARYALAY
                      92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                          BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
                        Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
             Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
अनुक्रम
                                                    गार्िी उपािना त्रवशेष
गार्िी िमस्त त्रवद्याओं की जननी हं                     6           नवग्रह की शांसत क सलर्े गार्िी मंि
                                                                                    े                                18

गार्िी मंि का पररिर्                                   7           दे वी गार्िी का िरल पूजन                          21

गार्िी मंि क िंदभा मं महापुरुषं क विन
            े                    े                     8           गार्िी स्तोि व माहात््र्                          25

गार्िी मडि क त्रवलक्षण प्रर्ोग
            े                                          12          रोग सनवारण क सलर्े पत्रवि जल
                                                                               े                                     34

त्रवसभडन गार्िी मडि                                    15          त्रवश्वासमि िंफहतोक्त गार्िी कवि                  37

                                                    मंि एवं स्तोि त्रवशेष
अघनाशकगार्िीस्तोि                                          29      श्री गार्िी कवि                                       33

गार्िी स्तोि                                               30      गार्िी कविम ्                                         39

गार्िीस्तोिम ्                                             30      गार्िी िुप्रभातम ्                                    40

गार्िी िालीिा                                              31      गार्िीरहस्र्ोपसनषत ्                                  41

श्री गार्िी शाप त्रवमोिनम ्                                32      गार्िी मडिाथाः िाथा                                   43

श्री गार्िी जी की आरती                                     32      श्री गार्िी फदव्र् िहस्रनाम स्तोिम ्                  44


                                                           हमारे उत्पाद
दस्क्षणावसता शंख            7 श्री हनुमान र्ंि              49 नवरत्न जफित श्री र्ंि          53 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा    67

भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी      20 मंि सिद्ध दै वी र्ंि िूसि     50 जैन धमाक त्रवसशष्ट र्ंि
                                                                       े                      54 िवा रोगनाशक र्ंि/        72

िवाकार्ा सित्रद्ध कवि      28 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसि     50 अमोद्य महामृत्र्ुजर् कवि
                                                                                ं             56 मंि सिद्ध कवि            74

मंिसिद्ध स्फफटक श्रीर्ंि   36 रासश रत्न                     51 मंगल र्ंि िे ऋणमुत्रि          65 YANTRA                   75

द्वादश महा र्ंि            38 मंि सिद्ध रूद्राक्ष           52 कबेर र्ंि
                                                                ु                             65 GEMS STONE               77

मंि सिद्ध मारुसत र्ंि      49 मंि सिद्ध दलभ िामग्री
                                         ु ा                52 शादी िंबंसधत िमस्र्ा           67 Book Consultation        78

घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि                         55 मंि सिद्ध िामग्री-         65, 66, 67
                                                    स्थार्ी और अडर् लेख
िंपादकीर्                                                       4 दै सनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका                   68

मई मासिक रासश फल                                            57 फदन-रात क िौघफिर्े
                                                                        े                                                 69

मई 2012 मासिक पंिांग                                        61 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक                 70

मई 2012 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार                             63 ग्रह िलन मई-2012                                           71

मई 2012 -त्रवशेष र्ोग                                       68 हमारा उद्दे श्र्                                           81
GURUTVA KARYALAY



                                                    िंपादकीर्
त्रप्रर् आस्त्मर्

           बंध/ बफहन
              ु

                       जर् गुरुदे व
                                          ॐ भूभवः स्वः तत्ित्रवतुवरेण्र्ं
                                              ा ु                 ा
                                  भगो दे वस्र् धीमफह सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ्॥
भावाथा: उि प्राणस्वरूप, दःखनाशक, िुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, दे वस्वरूप परमात्मा को हम अडतःकरण मं
                         ु
धारण करं । वह परमात्मा हमारी बुत्रद्ध को िडमागा मं प्रेररत करे ।

        फहडद ू धमाग्रंथं मं उल्लेख हं की दे वी गार्िी िभी प्रकार क ज्ञान और त्रवज्ञान की जननी है । इिसलए तो स्जन
                                                                  े
वेदं को िमस्त त्रवद्याओं का खजाना माना जाता हं ,      िारं वेदं को दे वी गार्िी क पुि माने जाते हं । र्फह कारण हं ,
                                                                                 े
क दे वी गार्िी को वेदं की माता अथाात "वेदमाता" कहा गर्ा हं ।
 े
दे वी गार्िी क मडि क िार पद िे क्रमशः
              े     े
ॐ भूभवः स्वः िे ऋग्वेद की रिना हुई। तत्ित्रवतुवरेण्र्ं िे र्जुवेद की रिना हुई। भगोदे वस्र् धीमफह िे िामवेद की
     ा                                         ा              ा
रिना हुई। और सधर्ो र्ोनः प्रिोदर्ात ् िे अथवावेद की रिना हुई हं ऐिा धमाग्रंथं मं उल्लेस्खत हं ।
        पौरास्णक काल मं ही हमारे ज्ञानी ऋषी मुसनर्ं को ज्ञात हो गर्ा था की गार्िी दे वी िमस्त त्रवद्याओं की
जननी हं । ऐिा माना जाता हं की िार वेदं िे ही िमस्त शास्त्र, दशान, ब्राह्मण ग्रडथ, आरण्र्क, िूि, उपसनषद्, पुराण,
स्मृसत आफद का सनमााण हुआ हं ।
        पौरास्णक माडर्ता हं की कालांतर मं इडहीं ग्रडथं मं वस्णात ज्ञान िे िमस्त सशल्प, वास्णज्र्, सशक्षा, रिार्न,
वास्तु, िंगीत आफद ८४ कलाओं का आत्रवष्कार हुआ हं । र्फह कारण हं की दे वी गार्िी को िंिार क िमस्त ज्ञान-
                                                                                         े
त्रवज्ञान की जननी कहाँ जाता हं । स्जि प्रकार फकिी बीज क भीतर िंपूणा वृक्ष िस्डनफहत होता है , उिी प्रकार गार्िी
                                                       े
क 24 अक्षरं मं िंिार क िमस्त ज्ञान और त्रवज्ञान िस्डनफहत हं । र्ह िब गार्िी का ही अथा त्रवस्तार हं ।
 े                    े


वेदमाता गार्िी क जडम िे िंबंसधत त्रवसभडन माडर्ताएं प्रिसलत हं ।
                े
        कछ जानकारो का मानना हं की वेदमाता गार्िी का जडम श्रावणी पूस्णामा को हुवा था इि सलर्े इि फदन को
         ु
गार्िी जर्ंसत क रुप मं भी मनार्ा जाता हं ।
               े
        कछ अडर् पोराणीक माडर्ताओं एवं धमा ग्रंथो मं उल्लेख हं की फहडदी पंिांग क ज्र्ैष्ठ महीने क शुक्ल पक्ष की
         ु                                                                     े                े
एकादशी को मां गार्िी का प्राकटर् हुवा हं । कछ िमर् क पश्चर्ात इिी फदन ऋत्रष त्रवश्रासमि ने गार्िी मंि की रिना
                                            ु       े
की थी। ऐिी माडर्ता है फक इिी फदन वेदमाता गार्िी िाक्षात मं धरती पर अपने रूप मं प्रकट हुईं थीं। ज्ञान तथा
वेदं का ज्ञान दे वी गार्िी िे ही प्रकट हुआ है ।
        अडर् पौरास्णक माडर्ता क अनुिार कासताक शुक्ल पक्ष क षष्ठी क िूर्ाास्त और िप्तमी क िूर्ोदर् क मध्र्
                               े                          े       े                     े          े
वेदमाता गार्िी का जडम हुआ था। भले ही मां गार्िी क जडम फदन को लेकर त्रवसभडन लोक माडर्ता एवं शास्त्रं की
                                                 े
सभडनता िे अलग-अलग मत हो। लेफकन िभी ऋत्रषर्ं ने एक मत िे गार्िी मंि की मफहमा को स्वीकार फकर्ा हं ।
अथवावेद मं उल्लेख हं की गार्िी मंि क जप िे मनुष्र् की आर्ु, प्राण, शत्रि, कीसता, धन और ब्रह्मतेज मं वृत्रद्ध होती हं ।
                                    े


       गार्िी मंि क िंदभा मं त्रवसभडन महापुरुषो क कथन िे समलते-जुलते असभमत हं महापुरुषो क कथन िे
                   े                             े                                       े
आपको पररसित कराने हे तु इि अंक मं उिक अंश को त्रवसभडन स्रोत क माध्र्म िे िंलग्न करने का प्रर्ाि फकर्ा
                                     े                       े
गर्ा हं स्जििे र्ह स्पष्ट है फक कोई ऋत्रष र्ा त्रवद्वान अडर् त्रवषर्ं मं िाहे अपना मतभेद रखते हं, पर गार्िी क बारे
                                                                                                             े
मं उन िब मं िमान श्रद्धा थी और वे िभी अपनी उपािना मं उिका प्रथम स्थान रखते थे ! कछ त्रवद्वानो का कथन
                                                                                 ु
हं की शास्त्रं मं, ग्रंथं मं, स्मृसतर्ं मं, पुराणं मं गार्िी की मफहमा तथा िाधना पर प्रकाश िालने वाले िहस्रं श्लोक
भरे पिे हं । इन िबका िंग्रह फकर्ा जाए, तो एक बिा भारी गार्िी पुराण बन िकता हं ।
       िामाडर्तः गार्िी मडि की मफहमा एवं प्रभाव िे प्रार्ः हर फहडद ु धमा को मानने वाले लोग पररसित हं । गार्िी
मंि को "गुरु मंि" क रुप मे जाना जाता है । क्र्ोफक फहडद ु धमा मं गार्िी मडि िभी मंिं मं िवोच्ि है और िबिे
                   े
प्रबल शत्रिशाली मंि हं ।

       इि अंक मं अत्र्ंत िरल और असधक प्रभावी दै सनक गार्िी उपािना जो हर िाधारण िे िाधारण व्र्त्रि जो
अथाात जो व्र्त्रि फकिी भी प्रकार क कमा-कांि र्ा पूजा पाठ को नहीं जानता हं र्ा जानते हो ओर उिे करने मं
                                  े
अिमथा हो, ऐिे व्र्त्रि भी िरल गार्िी उपािना आिानी िे कर िक इि उद्दे श्र् िे इि अंक मं िलग्न करने का
                                                          े
प्रर्ाि फकर्ा गर्ा हं । क्र्ोफक गार्िी उपािना जीवन क हर स्स्थसत मं भि क सलए सनस्श्चत रूप िे फार्दे मंद होती हं ।
                                                    े                  े
वैिे तो मां गार्िी की पूजा हे तु अनेको त्रवसध-त्रवधान प्रिलन मं हं लेफकन िाधारण व्र्त्रि जो िंपूणा त्रवसध-त्रवधान िे
गार्िी का पूजन नहीं कर िकते वह व्र्त्रि र्फद गार्िी जी क पूजन का िरल त्रवसध-त्रवधान ज्ञात करले तो वहँ
                                                        े
सनस्श्चत रुप िे पूणा फल प्राप्त कर िकते हं । इिी उद्दे श्र् िे इि अंक मं पाठको क ज्ञान वृत्रद्ध क उद्दे श्र् िे मां गार्िी
                                                                                े                े
क पूजन की असत िरल शीघ्र फलप्रद त्रवसध, मंि, स्तोि इत्र्ाफद िे आपको पररसित कराने का प्रर्ाि फकर्ा हं । जो लोग
 े
िरल त्रवसध िे मंि जप पूजन इत्र्ाफद करने मं भी अिमथा हं वहँ लोग श्री गार्िी जी क मंि-स्तोि इत्र्ाफद का श्रवण
                                                                               े
कर क भी पूणा श्रद्धा एवं त्रवश्वाि रख कर सनस्श्चत ही लाभ प्राप्त कर िकते हं , र्हँ अनुभूत उपार् हं जो सनस्श्चत फल
    े
प्रदान करने मं िमथा हं इि मं जरा भी िंिर् नहीं हं । इि अंक मं आप अपने कार्ा उद्दे श्र् की पूसता हे तु िरल िे
िरल उपार्ं को कर पूणा िफलता प्राप्त कर िक इि उद्दे श्र् िे गार्िी मडि क त्रवलक्षण प्रर्ोग को इि अंक मं
                                         े                             े
िलग्न करने का प्रर्ाि फकर्ा गर्ा हं । स्जिे िंपडन करक आप वेदमाता गार्िी की कृ पा प्राप्त कर अपने मनोरथं को
                                                     े
सनस्श्चत रुप िे पूणा कर िकते हं ।
   आप िभी क मागादशान र्ा ज्ञानवधान क सलए गार्िी उपािना िे िंबंसधत उपर्ोगी जानकारी भी इि अंक मं
           े                        े
िंकसलत की गई हं । िाधक एवं त्रवद्वान पाठको िे अनुरोध हं , र्फद दशाार्े गए मंि, स्तोि इत्र्ादी क िंकलन, प्रमाण
                                                                                               े
पढ़ने, िंपादन मं, फिजाईन मं, टाईपींग मं, त्रप्रंफटं ग मं, प्रकाशन मं कोई िुफट रह गई हो, तो उिे स्वर्ं िुधार लं र्ा फकिी
र्ोग्र् गुरु र्ा त्रवद्वान िे िलाह त्रवमशा कर ले । क्र्ोफक त्रवद्वान गुरुजनो एवं िाधको क सनजी अनुभव त्रवसभडन अनुष्ठा
                                                                                        े
मं भेद होने पर पूजन त्रवसध एवं जप त्रवसध मं सभडनता िंभव हं ।




                                                                                                      सिंतन जोशी
6                                         मई 2012




                                गार्िी िमस्त त्रवद्याओं की जननी हं
                                                                                                        सिंतन जोशी
           ॐ भूभवः स्वः तत्ित्रवतुवरेण्र्ं
               ा ु                 ा                           उिी प्रकार गार्िी क 24 अक्षरं मं िंिार क िमस्त
                                                                                  े                    े

  भगो दे वस्र् धीमफह सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ्॥                ज्ञान और त्रवज्ञान िस्डनफहत हं । र्ह िब गार्िी का ही
                                                               अथा त्रवस्तार हं ।
       फहडद ू धमाग्रंथं मं उल्लेख हं की दे वी गार्िी िभी       मंि की परीभाषा:
प्रकार क ज्ञान और त्रवज्ञान की जननी है । इिसलए तो
        े                                                      मंि उि ध्वसन को कहते है जो अक्षर(शब्द) एवं अक्षरं
स्जन वेदं को िमस्त त्रवद्याओं का खजाना माना जाता हं ,          (शब्दं) क िमूह िे बनता है । िंपूणा ब्रह्माण्ि मं दो प्रकार
                                                                        े
       त्रवद्वानो क मतानुशार िभी वेद दे वी गार्िी की
                   े                                           फक ऊजाा िे व्र्ाप्त है , स्जिका हम अनुभव कर िकते है ,
व्र्ाख्र्ा हं । र्फह कारण हं , क दे वी गार्िी को वेदं की
                                े                              वह ध्वसन उजाा एवं प्रकाश उजाा है । इि क अलावा
                                                                                                      े
माता अथाात "वेदमाता" कहा गर्ा हं । िारं वेदं को दे वी          ब्रह्माण्ि मं कछ एिी ऊजाा भी व्र्ाप्त होती है स्जिे ना
                                                                              ु
गार्िी क पुि माने जाते हं ।
        े                                                      हम दे ख िकते है नाही िुन िकते है नाहीं अनुभव कर

       शास्त्रोि मत िे जब ब्रह्माजी ने एक-एक करके              िकते है । आध्र्ास्त्मक शत्रि इनमं िे कोई भी एक प्रकार
                                                               की ऊजाा दिरी उजाा क िहर्ोग क त्रबना िफक्रर् नहीं
                                                                        ू         े        े
अपने िारं मुख िे गार्िी क िार अलग-अलग िरण की
                         े
                                                               होती। मंि सिर् ध्वसनर्ाँ नहीं हं स्जडहं हम कानं िे
                                                                            ा
व्र्ाख्र्ा की थी उि वि िारं वेदं का उद्गम माना जाता
                                                               िुनते िकते हं , ध्वसनर्ाँ तो माि मंिं का लौफकक स्वरुप
हं र्ा िार वेद प्रकट हुए हं ।
                                                               भर हं स्जिे हम िुन िकते हं । ध्र्ान की उच्ितम
दे वी गार्िी क मडि क िार पद िे क्रमशः
              े     े
                                                               अवस्था मं व्र्त्रि का आध्र्ास्त्मक व्र्त्रित्व पूरी तरह िे
ॐ भूभवः स्वः िे ऋग्वेद की रिना हुई। तत्ित्रवतुवरेण्र्ं
     ा                                         ा               ब्रह्माण्ि की अलौफकक शत्रिओ क िाथ मे एकाकार हो
                                                                                            े
िे र्जुवेद की रिना हुई। भगोदे वस्र् धीमफह िे िामवेद
       ा                                                       जाता है और त्रवसभडन प्रकारी की शत्रिर्ां प्राप्त होने
की रिना हुई।      और सधर्ो र्ोनः प्रिोदर्ात ् िे अथवावेद       लगती हं । प्रािीन ऋत्रषर्ं ने इिे शब्द-ब्रह्म की िंज्ञा दी
की रिना हुई हं ऐिा धमाग्रंथं मं उल्लेस्खत हं ।                 वह शब्द जो िाक्षात ् ईश्वर हं ! उिी िवाज्ञानी शब्द-ब्रह्म िे
       पौरास्णक काल मं ही हमारे ज्ञानी ऋषी मुसनर्ं             एकाकार होकर व्र्त्रि को मनिाहा ज्ञान प्राप्त कर ने मे
को ज्ञात हो गर्ा था की गार्िी दे वी िमस्त त्रवद्याओं की        िमथा हो िकता हं ।
जननी हं । ऐिा माना जाता हं की िार वेदं िे ही िमस्त                     हर मंिं मं कई त्रवशेष प्रकार की शत्रि सनफहत
शास्त्र, दशान, ब्राह्मण ग्रडथ, आरण्र्क, िूि, उपसनषद्,          होती हं । मंिं क अक्षर शत्रि बीज माने जाते हं । जैिे
                                                                               े
पुराण, स्मृसत आफद का सनमााण हुआ हं ।                           िभी त्रवसशष्ट मंिं मं उनक शब्दं मं त्रवशेष प्रकार की
                                                                                        े
       पौरास्णक माडर्ता हं की कालांतर मं इडहीं ग्रडथं          शत्रि तो होती है , पर फकिी-फकिी मडि मं उन शब्दं का
मं वस्णात ज्ञान िे िमस्त सशल्प, वास्णज्र्, सशक्षा,             कोई त्रवशेष महत्वपूणा अथा नहीं होता। लेफकन गार्िी

रिार्न, वास्तु, िंगीत आफद ८४ कलाओं का आत्रवष्कार               मंि मं ऐिा नहीं हं । गार्िी मंि क हर एक-एक अक्षर मं
                                                                                                े
                                                               अनेक प्रकार क गूढ़ रहस्र्मर् तत्त्व सछपे हुए हं । ऐिा
                                                                            े
हुआ हं । र्फह कारण हं की दे वी गार्िी को िंिार के
                                                               माना जाता हं की िमस्त लोक मं प्रिसलत ६४ कलाओं,
िमस्त ज्ञान-त्रवज्ञान की जननी कहाँ जाता हं । स्जि
                                                               ६ शास्त्रं, ६ दशानं एवं ८४ त्रवद्याओं क रहस्र् प्रकासशत
                                                                                                      े
प्रकार फकिी बीज क भीतर िंपूणा वृक्ष िस्डनफहत होता है ,
                 े
                                                               करने वाले िभी अथा गार्िी क हं ।
                                                                                         े
7                                         मई 2012




                                            गार्िी मंि का पररिर्
                                                                                                         सिंतन जोशी
       िामाडर्तः गार्िी मडि की मफहमा एवं प्रभाव िे               गार्िी मंि का अथा त्रवस्तृत शब्दो मं
प्रार्ः हर फहडद ु धमा को मानने वाले लोग पररसित हं ।              ओम            -    है िवाशत्रिमान परमेश्वर
                                                                 भूर                आध्र्ास्त्मक ऊजाा का अवतार
गार्िी मंि को "गुरु मंि" क रुप मे जाना जाता है ।
                          े
                                                                               -
                                                                 भव            -    दख की त्रवनाशक
                                                                                     ु
क्र्ोफक फहडद ु धमा मं गार्िी मडि िभी मंिं मं िवोच्ि
                                                                 स्वह          -    खुशी क अवतार
                                                                                          े
है और िबिे प्रबल शत्रिशाली मंि हं ।
                                                                 तत ्          -    जो (भगवान का िंकत)
                                                                                                    े
                                                                 ित्रवतुर      -    उज्ज्वल, िमकीले, िूर्ा की तरह
           ॐ भूभवः स्वः तत्ि त्रवतुवरेण्र्ं।
                ा                   ा                            वारेण्र्ं     -    उत्तम
  भगोदे वस्र् धीमफह सधर्ो र्ोनः प्रिोदर्ात॥                      भगो           -    पापं का नाशक
                                                                 दे वस्र्      -    परमात्मा

भावाथा: उि     प्राणस्वरूप, दःखनाशक, िुखस्वरूप, श्रेष्ठ,
                             ु                                   धीमफह         -    मुजे प्रासप्त हो
                                                                 सधर्ो         -    एसि बुत्रद्ध
तेजस्वी,     पापनाशक,     दे वस्वरूप   परमात्मा   को    हम
                                                                 र्ो           -    जो
अडतःकरण मं धारण करं । वह परमात्मा हमारी बुत्रद्ध को
                                                                 नह            -    हमे
िडमागा मं प्रेररत करे ।
                                                                 प्रिोदर्ात    -    प्रेरणा दे


                                                  दस्क्षणावसता शंख
  आकार लंबाई मं      फाईन        िुपर फाईन स्पेशल    आकार लंबाई मं              फाईन          िुपर फाईन स्पेशल
  0.5" ईंि                   180       230       280 4" to 4.5" ईंि                       730       910       1050
  1" to 1.5" ईंि             280       370       460 5" to 5.5" ईंि                    1050            1250      1450
  2" to 2.5" ईंि             370          460          640 6" to 6.5" ईंि              1250            1450      1900
  3" to 3.5" ईंि             460          550          820 7" to 7.5" ईंि              1550            1850      2100
  हमारे र्हां बिे आकार क फकमती व महं गे शंख जो आधा लीटर पानी और 1 लीटर पानी िमाने की क्षमता वाले
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  होते हं । आपक अनुरुध पर उपलब्ध कराएं जा िकते हं ।
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     स्पेशल गुणवत्ता वाला दस्क्षणावसता शंख पूरी तरह िे िफद रं ग का होता हं ।
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     िुपर फाईन गुणवत्ता वाला दस्क्षणावसता शंख फीक िफद रं ग का होता हं ।
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     फाईन गुणवत्ता वाला दस्क्षणावसता शंख दं रं ग का होता हं ।

                                          GURUTVA KARYALAY
                                      Call us: 91 + 9338213418, 91+ 923832878
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8                                                       मई 2012




                           गार्िी मंि क िंदभा मं महापुरुषं क विन
                                       े                    े
                                                                                                                       स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
          िभी ऋत्रषर्ं ने एक मत िे गार्िी मंि की                     वाला        अडर्          कोई       मडि
मफहमा को स्वीकार फकर्ा हं ।                                          स्वगा और पृथ्वी पर नहीं
          अथवावेद मं उल्लेख हं की गार्िी मंि क जप िे
                                              े                      हं । जैिे गंगा क िमान
                                                                                     े
मनुष्र् की आर्ु, प्राण, शत्रि, कीसता, धन और ब्रह्मतेज मं             कोई तीथा नहीं, कशव िे
                                                                                     े
वृत्रद्ध होती हं ।                                                   श्रेष्ठ    कोई         दे व      नहीं।
                                                                     गार्िी िे श्रेष्ठ मंि न
त्रवश्वासमि जी का कथन हं :                                           हुआ हं , न आगे होगा।

                                     गार्िी मंि िे बढ़कर             गार्िी          मंि       जप       लेने

                             पत्रवि करने वाला और कोई                 वाला        िमस्त           त्रवद्याओं      का

                               मंि    नहीं    हं ।   उडहं   नी       वेत्ता, श्रेष्ठ हो जाता हं । जो फद्वज

                                गार्िी मंि की मफहमा मं               अथाात ब्राह्मण गार्िी परार्ण नहीं, वह वेदं का पारं गत

                                कहां हं      की जो मनुष्र्           होते हुए भी शूद्र क िमान है , अडर्ि फकर्ा हुआ उिका
                                                                                        े

                                सनर्समत रूप िे तीन वषा               श्रम व्र्था हं । जो मनुष्र् गार्िी को नहीं जानता, ऐिा

                                तक गार्िी जाप करता हं ,              व्र्त्रि ब्राह्मणत्व िे च्र्ुत अथाात बरख़ास्त और पापर्ुि

                                वह सनस्श्चत रुप िे ईश्वर             हो जाता हं ।

                              को प्राप्त करता हं ।
                                  जो फद्वज अथाात ब्राह्मण            पाराशर जी का कथन हं
दोनं                 िंध्र्ाओं मं गार्िी मंि जपता हं , वह            िमस्त जप, िूिं तथा वेद मंिं मं गार्िी मंि परम श्रेष्ठ
िमस्त वेद को पढ़ने क िमान फल को प्राप्त करता हं ।
                    े                                                हं ।      वेद        और       गार्िी        की
मनुष्र् अडर् कोई अनुष्ठान र्ा िाधना करे र्ा न करे ,                  तुलना           मं     गार्िी          का
कवल गार्िी मंि क जप िे वहँ िभी सित्रद्ध प्राप्त कर
 े              े                                                    पलिा                 भारी          हं ।
िकता हं । प्रसतफदन एक हजार जप करने वाला मनुष्र्                      भत्रिपूवक
                                                                             ा             गार्िी       का
               ू
िमस्त पापं िे छट जाता हं । त्रवश्वासमि जी का र्हाँ तक                जप करने वाला मनुष्र्
कहना हं की जो फद्वज अथाात ब्राह्मण गार्िी की उपािना                  मुि होकर पत्रवि बन
नहीं करता, वह सनडदा का पाि हं ।                                      जाता        हं ।      वेद, शास्त्र,
                                                                     पुराण, इसतहाि पढ़ लेने
र्ोसगराज र्ाज्ञवल्क्र् जी का कथन हं                                  पर भी जो गार्िी िे

          वेदं का िार उपसनषद हं , उपसनषद का िार                      हीन        है , उिे         ब्राह्मण      नहीं

व्र्ाहृसतर्ं िफहत गार्िी हं । गार्िी वेदं की जननी है ,               िमझना िाफहर्े।

पापं का नाश करने वाली है , इििे असधक पत्रवि करने
9                                              मई 2012



शंख ऋत्रष का कथन हं                                              सनमाल         करती      है ,

नरक क िमान िमुद्र मं सगरते हुए को हाथ पकि कर
     े                                                           गार्िी रूपी ब्रह्म गंगा

बिाने वाली गार्िी ही हं । उििे उत्तम तत्व स्वगा और               िे आत्मा पत्रवि होती

पृथ्वी पर कोई नहीं हं । गार्िी का ज्ञाता सनस्िंदेह स्वगा         हं । जो गार्िी छोिकर

को प्राप्त करता हं ।                                             अडर्           उपािनार्ं
                                                                 करता है , वह पकवान
                                                                 छोिकर सभक्षा माँगने
शौनक ऋत्रष का कथन हं
                                                                 वाले क िमान मूखा
                                                                       े
        अडर् उपािनार्ं करं िाहे न करं , कवल गार्िी
                                         े
                                                                 हं ।   का्र्    िफलता
जप िे ही फद्वज (ब्राह्मण) जीवन मुि हो जाता हं । व्र्त्रि
                                                                 तथा तप की वृत्रद्ध के
िमस्त िांिाररक और पारलौफकक िुखं को प्राप्त करता
                                                                 सलर्े गार्िी िे श्रेष्ठ और कछ नहीं हं ।
                                                                                             ु
हं । िंकट क िमर् दि हजार जप करने िे त्रवपत्रत्त का
           े
सनवारण होता हं ।                                                 भारद्वाज ऋत्रष का कथन हं
                                                                 ब्रह्मा आफद दे वता भी गार्िी का
अत्रि मुसन का कथन हं                                             जप      करते     हं ,   वह      ब्रह्म
        दे वी गार्िी आत्मा का                                    िाक्षात्कार    कराने    वाली     हं ।
परम शोधन करने वाली हं ।                                          अनुसित काम करने वालं के
उिक प्रताप िे कफठन दोष
   े                                                                                   ू
                                                                 दा गुण गार्िी क कारण छट
                                                                    ु           े
और दा गुणं का पररमाजान
      ु                                                          जाते हं । गार्िी िे रफहत
अथाात िर्ाई हो जाती हं ।                                         व्र्त्रि शुद्र िे भी अपत्रवि हं ।
जो मनुष्र् गार्िी तत्त्व
को भली प्रकार िे िमझ                                             िरक ऋत्रष का कथन हं
लेता है , उिक सलए इि
             े                                                           जो       मनुष्र्       ब्रह्मिर्ापूवक
                                                                                                             ा
िंिार मं कोई िुख शेष
                                                                 गार्िी की उपािना करता है और
नहीं रह जाता हं ।
                                                                 आँवले क ताजे फलं का िेवन
                                                                        े

नारदजी का कथन हं                                                 करता है , वह मनुष्र् दीघाजीवी होता

गार्िी भत्रि का ही स्वरूप हं । जहाँ भत्रि रूपी गार्िी है ,       हं ।
वहाँ श्रीनारार्ण का सनवाि होने मं कोई िंदेह नहीं करना
िाफहर्े ।                                                        वसशष्ठ जी का कथन हं

                                                                 मडदमसत, कमागागामी और अस्स्थरमसत भी गार्िी क
                                                                          ु                                 े
महत्रषा व्र्ाि जी का कथन हं
        स्जि प्रकार पुष्प का िार शहद, दध का िार घृत              प्रभाव िे उच्ि पद को प्राप्त करते हं , फफर िद् गसत होना
                                       ू
है , उिी प्रकार िमस्त वेदं का िार गार्िी हं । सिद्ध की           सनस्श्चत हं । जो पत्रविता और स्स्थरतापूवक गार्िी की
                                                                                                         ा
हुई गार्िी कामधेनु क िमान हं । गंगा शरीर क पापं को
                    े                     े                      उपािना करते है , वे आत्म-लाभ प्राप्त करते हं ।
10                                                मई 2012



जगद्गरु शंकरािार्ा जी का कथन हं
     ु                                                        महामना मदनमोहन मालवीर् जी का कथन हं
गार्िी की मफहमा का वणान                                       ऋत्रषर्ं ने जो अमूल्र् रत्न हमं
करना मनुष्र् की िामाथ्र्                                      फदर्े    हं , उनमं              िे   एक
क बाहर हं । बुत्रद्ध का
 े                                                            अनुपम रत्न गार्िी हं ।
होना इतना बिा कार्ा है ,                                      गार्िी     िे        बुत्रद्ध    पत्रवि
स्जिकी िमता िंिार के                                          होती हं । ईश्वर का प्रकाश
और फकिी काम िे नहीं                                           आत्मा मं आता हं । इि
हो िकती । आत्म-प्रासप्त                                       प्रकाश          मं              अिंख्र्
करने       की     फदव्र्     दृत्रष्ट                         आत्माओं         को भव-बंधन
स्जि बुत्रद्ध िे प्राप्त होती                                 िे िाण समला हं । गार्िी
है , उिकी प्रेरणा गार्िी द्वारा                               मं      ईश्वर परार्णता क भाव
                                                                                      े
होती हं । गार्िी आफद मंि हं । उिका                   अवतार    उत्पडन करने की शत्रि हं । िाथ ही                              वह
दररतं को नष्ट करने और ऋत क असभवधान क सलर्े
 ु                        े         े                         भौसतक अभावं को दर करती हं । गार्िी की उपािना
                                                                              ू
हुआ हं ।                                                      ब्राह्मणं क सलर्े तो अत्र्डत आवश्र्क हं । जो ब्राह्मण
                                                                         े
                                                              गार्िी जप नहीं करता, वह अपने कताव्र् धमा को छोिने
महात्मा गाँधी जी का कथन हं
                                                              का अपराधी होता हं ।
गार्िी मंि सनरं तर जप रोसगर्ं
को अच्छा करने और आत्मा
                                                              रवीडद्र टै गोर जी का कथन हं
की उडनसत क सलर्े उपर्ोगी
          े
                                                              भारतवषा को जगाने वाला जो मंि
हं । गार्िी का स्स्थर सित्त
                                                              है , वह इतना िरल है फक एक
और शाडत हृदर् िे फकर्ा
                                                              ही श्वाि मं उिका उच्िारण
हुआ      जप       आपात्तकाल              मं
                                                              फकर्ा जा िकता हं । वह है -
िंकटं      को     दर
                   ू       करने         का
                                                              गार्िी मंि । इि पुनीत मंि
प्रभाव रखता हं ।
                                                              का अभ्र्ाि करने मं फकिी
लोकमाडर् सतलक जी का कथन हं                                    प्रकार    के         ताफकक
                                                                                       ा           ऊहापोह,
स्जि बहुमुखी दािता क बंधनं मं
                    े                                         फकिी      प्रकार        के       मतभेद    अथवा
भारतीर्      प्रजा     जकिी             हुई   है ,            फकिी प्रकार क बखेिे की गुंजाइश नहीं हं ।
                                                                           े
उिक सलर्े आत्मा क अडदर
   े             े
प्रकाश     उत्पडन          होना         िाफहर्े,              र्ोगी अरत्रवडदजी
स्जििे      ित ् और           अित ् का                        र्ोगी अरत्रवडदजी                 ने त्रवसभडन स्थानो पर जगह गार्िी
त्रववेक हो, कमागा को छोिकर
             ु                                                जप करने का सनादेश फकर्ा हं । उडहंने बतार्ा फक गार्िी
श्रेष्ठ मागा पर िलने की प्रेरणा                               मं ऐिी शत्रि िस्डनफहत है , जो महत्त्वपूणा कार्ा कर
समले, गार्िी मंि मं र्ही भावना                                िकती हं । उडहंने कईर्ं को िाधना क तौर पर गार्िी
                                                                                               े
त्रवद्यमान हं ।                                               का जप बतार्ा हं ।
11                                                  मई 2012



स्वामी रामकृ ष्ण परमहं ि जी का कथन हं                       हं । स्जि पर परमात्मा प्रिडन होते हं , उिे िद् बुत्रद्ध प्रदान

मं लोगं िे कहता हूँ फक ल्बी                                 करते हं । िद् बुत्रद्ध िे ित ् मागा

िाधना      करने         की       उतनी                       पर प्रगसत होती है और ित ्

आवश्र्कता        नहीं    हं ।     इि                        कमा िे िब प्रकार क िुख
                                                                              े

छोटी-िी गार्िी की िाधना                                     समलते हं । जो ित ् की ओर

करक दे खं । गार्िी का
   े                                                        बढ़ रहा है , उिे फकिी प्रकार

जप      करने      िे     बिी-बिी                            क िुख की कमी नहीं रहती
                                                             े

सित्रद्धर्ाँ समल जाती हं । र्ह                              । गार्िी िद् बुत्रद्ध का मंि हं ।

मंि छोटा है , पर इिकी शत्रि                                 इिसलर्े उिे मंिं का मुकटमस्ण
                                                                                   ु

बिी भारी हं ।                                               कहा हं ।


स्वामी रामतीथा जी का कथन हं                                 स्वामी सशवानंदजी जी का कथन हं
राम को प्राप्त करना िबिे बिा                                ब्राह्ममुहूता मं गार्िी का जप

काम हं । गार्िी का असभप्रार्                                करने िे सित्त शुद्ध होता है

बुत्रद्ध को काम-रुसि िे हटाकर                               और हृदर् मं सनमालता आती

राम-रुसि    मं     लगा          दे ना   हं ।                हं । शरीर नीरोग रहता है ,

स्जिकी बुत्रद्ध पत्रवि होगी, वही                            स्वभाव मं नम्रता आती है ,

राम को प्राप्त कर िकगा ।
                    े                                       बुत्रद्ध िूक्ष्म होने िे दरदसशाता
                                                                                      ू

गार्िी पुकारती है फक बुत्रद्ध मं                            बढ़ती है और स्मरण शत्रि

इतनी पत्रविता होनी िाफहर्े फक वह                            का त्रवकाि होता हं । कफठन

राम को काम िे बढ़कर िमझे ।                                  प्रिंगं    मं    गार्िी     द्वारा   दै वी
                                                            िहार्ता         समलती     हं ।   उिक द्वारा
                                                                                                े
महत्रषा रमण जी का कथन हं                                    आत्म-दशान हो
र्ोग त्रवद्या क अडतगात मंि त्रवद्या
               े                                            िकता हं ।
बिी प्रबलत हं । मंिं की शत्रि                                         उपरोि      महापुरुषो       के      कथन    िे   समलते-जुलते

िे अद्भत िफलतार्ं समलती हं
       ू                                                    असभमत प्रार्ः िभी त्रवद्वानो क हं । इििे स्पष्ट है फक
                                                                                          े
                                                            कोई ऋत्रष र्ा त्रवद्वान अडर् त्रवषर्ं मं िाहे अपना मतभेद
। गार्िी ऐिा मंि है , स्जििे
                                                            रखते हं, पर गार्िी क बारे मं उन िब मं िमान श्रद्धा
                                                                                े
आध्र्ास्त्मक और भौसतक दोनं
                                                            थी और वे िभी अपनी उपािना मं उिका प्रथम स्थान
प्रकार क लाभ समलते हं ।
        े
                                                            रखते थे ! कछ त्रवद्वानो का कथन हं की शास्त्रं मं, ग्रंथं
                                                                       ु
                                                            मं, स्मृसतर्ं मं, पुराणं मं गार्िी की मफहमा तथा िाधना
स्वामी त्रववेकानंद जी का कथन हं                             पर प्रकाश िालने वाले िहस्रं श्लोक भरे पिे हं । इन
राजा िे वही वस्तु माँगी जानी िाफहर्े, जो उिक गौरव क
                                            े      े        िबका िंग्रह फकर्ा जाए, तो एक बिा भारी गार्िी पुराण
अनुकल हो । परमात्मा िे माँगने र्ोग्र् वस्तु िद् बुत्रद्ध
    ू                                                       बन िकता हं ।
12                                       मई 2012




                                        गार्िी मडि क त्रवलक्षण प्रर्ोग
                                                    े
                                                                                    सिंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
मूल मंि:                                                        िंतान की प्रासप्त हे तु
ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं ।
     ुा                 ा                                       गार्िी मंि क आगे ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं बीज मंि लगाकर
                                                                            े

भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥                  जप करने िे िंतान की प्रासप्त होती हं ।

त्रवसध :                                                        मंि:
          प्रसतफदन प्रातः काल स्नानाफद िे सनवृत्त होकर              ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं ।
                                                                                             ुा                 ा
                                                                     भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥
स्वच्छ वस्त्र धारण कर उि मडि की एक माला जप
करं । त्रवद्वानो क मतानुशार गार्िी मडि को 108 बार
                  े
                                                                भूत-प्रेत इत्र्ाफद उपद्रवं क नाश हे तु
                                                                                            े
पढ़कर स्वच्छ जल को असभमंत्रित कर क पीने िे िाधक
                                  े
                                                                गार्िी मंि क आगे ॐ ह्रीं क्लीं बीज मंि लगाकर जप
                                                                            े
क िमस्त रोग-शोक-भर् दर होते हं ।
 े                   ू
                                                                करने िे भूत-प्रेत, तंि बाधा, िोट, मारण, मोहन,
          गार्िी मडि िे भात (पक हुए िावल) मं घी
                               े
                                                                उच्िाटन, वशीकरण, स्तंभन, कामण-टू मण, इत्र्ाफद
समलाकर 108 बार त्रवसधवत होम करने िे िाधक को
                                                                उपद्रवं का नाश होता हं ।
धमा, अथा, काम और मोक्ष की प्रासप्त होती हं ।
                                                                मंि:
                                                                       ॐ ह्रीं क्लीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं ।
                                                                                          ुा                 ा
लक्ष्मी प्रासप्त हे तु
                                                                     भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥
गार्िी मंि क आगे ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं बीज मंि लगाकर जप
            े
करने िे माँ लक्ष्मी प्रिडन होती हं ।
                                                                अिाध्र् रोगं क सनवारण हे तु
                                                                              े
मंि:
                                                                गार्िी मंि क आगे ॐ ह्रीं बीज मंि लगाकर जप करने
                                                                            े
       ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं ।
                                ुा                 ा
                                                                िे अिाध्र् रोग एवं परे शानीर्ं िे मुत्रि समलती हं ।
       भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥
                                                                मंि:
                                                                         ॐ ह्रीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं ।
                                                                                      ुा                 ा
ज्ञान प्रासप्त हे तु
                                                                     भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥
गार्िी मंि क पीछे ॐ ऐं क्लीं औ ं बीज मंि लगाकर
            े
जप करने िे मूख-जि िे जि व्र्त्रि भी त्रवद्वान हो जाता
              ा
                                                                धन-िंपत्रत्त की वृत्रद्ध हे तु
हं ।
                                                                गार्िी मंि क आगे ॐ आं ह्रीं क्लीं बीज मंि लगाकर
                                                                            े
मंि:
                                                                जप करने िे धन-िंपत्रत्त की वृत्रद्ध एवं रक्षा होती हं ।
ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं । भगो दे वस्र् धीमफह ।
     ुा                 ा
                                                                मंि:
         सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥ ॐ ऐं क्लीं औ ं ॥
                                                                    ॐ आं ह्रीं क्लीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं ।
                                                                                          ुा                 ा
                                                                     भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥
13                                    मई 2012




गार्िी मडि क अडर् अनुभूत प्रर्ोग:
            े                                             ज्वर सनवारण हे तु
                                                          र्फद ज्वर िे पीफित व्र्त्रि को उसित इलाज़ एवं दवाईर्ं
प्राण भर् सनवारण हे तु                                    िे राहत नहीं समल रही हो, तो आम क पत्तं को गार् क
                                                                                          े               े
र्फद व्र्त्रि क प्राण को फकिी भी कारण वश महान
               े                                          दध मं दबाकर गार्िी मडि पढ़कर 108 बार हवन करने
                                                           ू     ु
िंकट हो, ऐिी अवस्था मं शरीर का कण्ठ तक र्ा जाँघ           िे िभी प्रकार क ज्वर शीघ्र दर होने लगते हं और रोगी
                                                                         े            ू
तक का फहस्िा पानी (पत्रवि नदी, जलाशर् र्ा तालाब)          जल्दी स्वस्थ हो जाता हं ।
मं िू बा रहे इि प्रकार खिे होकर सनत्र् 108 बार गार्िी
मडि जपने िे प्राण की रक्षा होती हं , ऐिा त्रवद्वानो का    राज रोग सनवारण हे तु
कथन हं ।                                                  र्फद कोई व्र्त्रि राज रोग (अथाात: ऐिा रोग स्जििे
                                                                ू
                                                          पीछे छटना अिंभव हो, अिाध्र् रोग)िे पीफित हो, तो
ग्रह-बाधा सनवारण हे तु
                                                          मीठा वि को गार् क दध मं दबाकर गार्िी मडि पढ़कर
                                                                           े ू     ु
र्फद व्र्त्रि को ग्रह जसनत पीिाओं िे कष्ट हो, तो
                                                          108 बार हवन करने िे राज रोग मं राहत होने लगती हं
शसनवार क फदन पीपल क वृक्ष क नीिे बैठ कर गार्िी
        े          े       े
                                                          और रोगी जल्दी स्वस्थ हो ने लगता हं ।
मडि का जप करने िे ग्रहं क बुरे प्रभाव िे रक्षा होती
                         े
हं । र्ह पूणतः अनुभत प्रर्ोग हं ।
            ा      ू
                                                          कष्ठ रोग सनवारण हे तु
                                                           ु
मृत्र्ु भर् सनवारण हे तु                                  र्फद कोई व्र्त्रि कष्ठ रोग िे पीफित हो, तो शंख पुष्पी क
                                                                             ु                                   े
 र्फद व्र्त्रि की कुंिली मं अल्प मृत्र्ु र्ोग का         पुष्पं िे गार्िी मडि पढ़कर 108 बार हवन करने िे
   सनमााण हो रहा हो, तो गुरुसि क छोटे टु किे करक
                                े               े         कष्ठ रोग दर होता हं ।
                                                           ु        ू
   गार् क दध मं दबाकर गार्िी मडि पढ़कर प्रसतफदन
         े ू     ु
   108 बार हवन करने िे अकाल मृत्र्ु र्ोग का               उडमाद रोग सनवारण हे तु
   सनवारण होता है । इिे मृत्र्ुंजर् हवन भी कहते हं ।
                                                          र्फद घर का कोई िदस्र् उडमाद रोग िे पीफित हो, तो
   (गुरुसि को अडर् भाषाओं मं गुलवेल, मधुपणी,
                                                          गूलर की लकिी और फल िे गार्िी मडि पढ़कर 108
   नीमसगलो, अमृतवेल, अमृतवस्ल्ल आफद नाम िे भी
                                                          बार हवन करने िे उडमाद रोग का सनवारण होता हं ।
   जाना जाता हं ) को शमी वृक्ष की लकिी मं गार् का
   शुद्ध घी, जौ, गार् दध समलाकर 7 फदन तक सनर्समत
                       ू
                                                          मधुमेह (िार्त्रबटीज) रोग सनवारण हे तु
   गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन करने िे
                                                          र्फद व्र्त्रि मधुमेह रोग िे पीफित हो, तो ईख क रि मं
                                                                                                       े
   अकाल मृत्र्ु र्ोग दर होता है ।
                      ू
                                                          मधु समलाकर गार्िी मडि पढ़कर 108 बार हवन करने
 मधु, गार् का शुद्ध घी, गार् दध समलाकर 7 फदन
                               ू
                                                          िे मधुमेह रोग मं लाभ होता हं ।
   तक सनर्समत गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन
   करने िे अकाल मृत्र्ु र्ोग दर होता है ।
                              ू
 बरगद की िसमधा मं बरगद की हरी टहनी पर गार्               बवािीर रोग सनवारण हे तु
   का शुद्ध घी और गार् क दध िब का समश्रण कर 7
                        े ू                               र्फद व्र्त्रि बवािीर रोग िे पीफित हो, तो गार् क दही,
                                                                                                         े
   फदन तक सनर्समत गार्िी मडि जपते हुए 108 बार             दध व घी तीनो को समलाकर गार्िी मडि पढ़कर 108
                                                           ू
   हवन करने िे अकाल मृत्र्ु र्ोग दर होता है ।
                                  ू                       बार हवन करने िे बवािीर रोग मं लाभ होता हं ।
14                                           मई 2012



दमा रोग सनवारण हे तु                                      पीलाने िे अथवा िंबंसधत स्थान पर असभमंत्रित जल का

र्फद व्र्त्रि दमा रोग िे पीफित हो, तो अपामागा, गार्       सछटकाव करने िे भूताफद दोष दर होता है ।
                                                                                     ू

का शुद्ध घी समलाकर गार्िी मडि पढ़कर 108 बार हवन
करने िे दमा रोग मं लाभ होता हं ।                          िवा िुख प्रासप्त हे तु
                                                          िभी प्रकार िे िुखं की प्रासप्त क सलए, गार्िी मडि
                                                                                          े
राष्ट्र भर् सनवारण हे तु                                  जपते हुए 108 बार ताजे़ फलं िे हवन करने िे िवा
                                                                                  ू

र्फद फकिी राजा, नेता प्रजा र्ा दे श पर फकिी प्रकार िे     िुखं की प्रासप्त होती हं ।

शिु पक्ष िे आक्रमण का अंदेशा हो र्ा फकिी प्रकार िे
कदरती िंकट (त्रवद्युत्पात, अस्ग्न आफद) का भर् हो, तो
 ु                                                        लक्ष्मी की प्रासप्त हे तु
बंत की लकिी क छोटे -छोटे टू किे ़ कर गार्िी मडि
             े                                             लाल कमल पुष्प अथवा िमेली क पुष्प और शासल
                                                                                      े
पढ़कर108 बार हवन करने िे राष्ट्र भर् का सनवारण होता           िावल (िुगंसधत िावल र्ा मीठे िावल र्ा लाल
हं ।                                                          अक्षत) िे गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन
                                                              करने िे लक्ष्मी की प्रासप्त होती हं ।
असनष्टकारी दोष सनवारण हे तु                                बेल क छोटे -छोटे टु किे करक त्रबल्व, पुष्प, फल, घी,
                                                                 े                     े

र्फद फकिी फदशा, शिु त्रवशेष र्ा पंि तत्व िे िंबंसधत           खीर को समलाकर हवन िामग्री बनाकर, त्रबल्व की

दोष की आशंका हो, तो 21 फदन तक सनत्र् गार्िी मडि               लकिी िे गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन

का करं , जप की िमासप्त वाले फदन स्जि फदशा मं दोष              करने िे लक्ष्मी की प्रासप्त होती हं ।

र्ा शिु हो उि फदशा मं समट्टी का ढे ला असभमंत्रित
करक फक ने िे दोष दर होता हं ।
   े ं            ू                                       त्रवजर् प्रासप्त हे तु
                                                          र्फद फकिी िे त्रबना फकिी कारण िे िरकारी लोगं र्ा
शारीररक व्र्ासध सनवारण हे तु                              प्रिािनीर् िे अनावश्र्क वाद-त्रववाद िल रहा हो, तो

र्फद शरीर क फकिी अंग मं व्र्ासध र्ा पीिा हो, तो
           े                                              मदार की लकिी मं मदार क ताजे पि गार् का शुद्ध घी
                                                                                े

आत्म भाव एवं पूणा श्रद्धा िे गार्िी मडि का जप करते        समलाकर गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन करने िे

हुऐ कशा पर फक मार कर शरीर क उि अंग र्ा फहस्िी
     ु      ूँ             े                              त्रवजर् की प्रासप्त होती हं ।

का स्पशा करने िे िभी प्रकार क रोग, त्रवकार, त्रवष,
                             े
आफद नष्ट हो जाते हं ।                                     .नोटः- त्रवशेष लाभ की प्रासप्त हे तु फकिी भी
                                                          प्रर्ोग क करने िे पूवा कछ फदन सनस्श्चत िंख्र्ा
                                                                   े              ु
भूत-प्रत व्र्ासध सनवारण हे तु                             मं 1, 3, 5, 7, 11, 21 र्था िंभव जप करने िे
र्फद व्र्त्रि को भूत-प्रेत आफद बाधा िे पीिा हो र्ा कोई    प्रर्ोग मं शीध्र लाभ की प्रासप्त होती हं । जप के
स्थान त्रवशेष पर भूत-प्रेत आफद क्षूद्र जीवं का जमाविा
                                                          िाथ प्रसतफदन दशांश हवन करे अथवा दशांश की
हो, तो ताँबं क कलश मं जल भरकर गार्िी मडि का
              े
                                                          िंख्र्ा क असधक जप करं ।
                                                                   े
जप करते हुऐ उिमं फक मार कर जल को असभमंत्रित
                  ूँ
करले फफर उि व्र्त्रि पर जल सछटकने िे र्ा उिे                                           ***
15                                          मई 2012




                            त्रवसभडन गार्िी मडि
                                                                             सिंतन जोशी,  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
                         ॐ भूभवस्वः । तत ् ित्रवतुवरेण्र्ं ।
                              ुा                   ा                            Om bhur bhuvah svah
गार्िी दे वी मडि
                                                                                Tat savitur vareniyam
                         भगो दे वस्र् धीमफह ।
                                                                                Bhargo devasya dheemahee
                         सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ् ॥                            Dhiyo yo nah prachodayat.
                         ॐ सगररजार्ै त्रवद्महे ,
                                                                                Om Girijayai Vidhmahe
दगाा गार्िी मडि
 ु                       सशव त्रप्रर्ार्ै धीमफह,                                Shiv Priyayai Dheemahee
                         तडनो दगाा प्रिोदर्ात ्।।
                                                                                Tanno Durgaya Prachodayat.
                               ु
                         ॐ कात्र्ार्डर्ै त्रवद्महे ,
                                                                                Om Katyayanayai Vidhmahe
कात्र्ार्नी गार्िी मडि   कडर्ा कमारर ि धीमफह,
                                ु                                               Kanya Kumari cha Dheemahee
                         तडनो दगाा प्रिोदर्ात ्।।
                                                                                Tanno Durgaya Prachodayat.
                               ु
                         ॐ महालाक्ष्मर्े त्रवद्महे ,
                                                                                Om Mahalakshmaye Vidhmahe
लक्ष्मी गार्िी मडि       त्रवष्णु पत्नी ि धीमफह                                 Vishnu Pathniyai cha Dheemahee
                         तडनो लक्ष्मी:प्रिोदर्ात।
                                                                                Tanno Lakshmi Prachodayat.

                         ॐ महालाक्ष्मर्े त्रवद्महे ,
                                                                                Om Mahalakshmaye Vidhmahe
लक्ष्मी गार्िी मडि       त्रवष्णु त्रप्रर्ार् धीमफह                             Vishnu Priyay Dheemahee
                         तडनो लक्ष्मी:प्रिोदर्ात।
                                                                                Tanno Lakshmi Prachodayat.

                         ॐ वाग दे व्र्ै त्रवद्महे ,
                                                                                Om Vag devyai Vidhmahe
िरस्वती गार्िी मडि       काम राज्र्ा धीमफह तडनो िरस्वती                         Kam Rajya Dheemahee
                         :प्रिोदर्ात।
                                                                                Tanno Saraswati Prachodayat.

                         ॐ जनक नंफदडर्े त्रवद्महे ,
                                                                                Om Janaka Nandinye Vidhmahe
िीता गार्िी मडि          भुसमजार् धीमफह                                         Bhumijaya Dheemahee
                         तडनो िीता :प्रिोदर्ात।
                                                                                Tanno Sita Prachodayat .
                                                                                Om Vrishabhanu jayai Vidhmahe
                         ॐ वृष भानु: जार्ै त्रवद्महे , फक्रस्रप्रर्ार्
राधा गार्िी मडि
                                                                                Krishna priyaya Dheemahee
                         धीमफह तडनो राधा :प्रिोदर्ात।                           Tanno Radha Prachodayat.

                         ॐ श्री तुल्स्र्े त्रवद्महे , त्रवश्नुत्रप्रर्ार्       Om Tulasyai Vidhmahe
तुलिी गार्िी मडि                                                                Vishnu priyayay Dheemahee
                         धीमफह तडनो वृंदा: प्रिोदर्ात।                          Tanno Brindah Prachodayat.
                         ॐ पृथ्वी दे व्र्ै त्रवद्महे , िहस्र मूरतर्ै            Om Prithivi devyai Vidhmahe
पृथ्वी गार्िी मडि                                                               Sahasra murthaye Dheemahee
                         धीमफह तडनो पृथ्वी :प्रिोदर्ात।                         Tanno Prithvi Prachodayat.
                         ॐ पर्नडिार् त्रवद्महे , महा हं िार्                    Om Param Hansay Vidmahe
हं ि गार्िी मडि                                                                 maha hanasay dheemahee tanno
                         धीमफह तडनो हं ि: प्रिोदर्ात।                           hansh prachodyat.
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Gurutva jyotish may 2012

  • 1. Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका मई- 2012 NON PROFIT PUBLICATION .
  • 2. FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका मई 2012 िंपादक सिंतन जोशी गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग िंपका गुरुत्व कार्ाालर् 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन 91+9338213418, 91+9238328785, gurutva.karyalay@gmail.com, ईमेल gurutva_karyalay@yahoo.in, http://gk.yolasite.com/ वेब http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ पत्रिका प्रस्तुसत सिंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी फोटो ग्राफफक्ि सिंतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हमारे मुख्र् िहर्ोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक िोफ्टे क इस्डिर्ा सल) ई- जडम पत्रिका E HOROSCOPE अत्र्ाधुसनक ज्र्ोसतष पद्धसत द्वारा Create By Advanced उत्कृ ष्ट भत्रवष्र्वाणी क िाथ े Astrology Excellent Prediction १००+ पेज मं प्रस्तुत 100+ Pages फहं दी/ English मं मूल्र् माि 750/- GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. अनुक्रम गार्िी उपािना त्रवशेष गार्िी िमस्त त्रवद्याओं की जननी हं 6 नवग्रह की शांसत क सलर्े गार्िी मंि े 18 गार्िी मंि का पररिर् 7 दे वी गार्िी का िरल पूजन 21 गार्िी मंि क िंदभा मं महापुरुषं क विन े े 8 गार्िी स्तोि व माहात््र् 25 गार्िी मडि क त्रवलक्षण प्रर्ोग े 12 रोग सनवारण क सलर्े पत्रवि जल े 34 त्रवसभडन गार्िी मडि 15 त्रवश्वासमि िंफहतोक्त गार्िी कवि 37 मंि एवं स्तोि त्रवशेष अघनाशकगार्िीस्तोि 29 श्री गार्िी कवि 33 गार्िी स्तोि 30 गार्िी कविम ् 39 गार्िीस्तोिम ् 30 गार्िी िुप्रभातम ् 40 गार्िी िालीिा 31 गार्िीरहस्र्ोपसनषत ् 41 श्री गार्िी शाप त्रवमोिनम ् 32 गार्िी मडिाथाः िाथा 43 श्री गार्िी जी की आरती 32 श्री गार्िी फदव्र् िहस्रनाम स्तोिम ् 44 हमारे उत्पाद दस्क्षणावसता शंख 7 श्री हनुमान र्ंि 49 नवरत्न जफित श्री र्ंि 53 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा 67 भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी 20 मंि सिद्ध दै वी र्ंि िूसि 50 जैन धमाक त्रवसशष्ट र्ंि े 54 िवा रोगनाशक र्ंि/ 72 िवाकार्ा सित्रद्ध कवि 28 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसि 50 अमोद्य महामृत्र्ुजर् कवि ं 56 मंि सिद्ध कवि 74 मंिसिद्ध स्फफटक श्रीर्ंि 36 रासश रत्न 51 मंगल र्ंि िे ऋणमुत्रि 65 YANTRA 75 द्वादश महा र्ंि 38 मंि सिद्ध रूद्राक्ष 52 कबेर र्ंि ु 65 GEMS STONE 77 मंि सिद्ध मारुसत र्ंि 49 मंि सिद्ध दलभ िामग्री ु ा 52 शादी िंबंसधत िमस्र्ा 67 Book Consultation 78 घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि 55 मंि सिद्ध िामग्री- 65, 66, 67 स्थार्ी और अडर् लेख िंपादकीर् 4 दै सनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका 68 मई मासिक रासश फल 57 फदन-रात क िौघफिर्े े 69 मई 2012 मासिक पंिांग 61 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक 70 मई 2012 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार 63 ग्रह िलन मई-2012 71 मई 2012 -त्रवशेष र्ोग 68 हमारा उद्दे श्र् 81
  • 4. GURUTVA KARYALAY िंपादकीर् त्रप्रर् आस्त्मर् बंध/ बफहन ु जर् गुरुदे व ॐ भूभवः स्वः तत्ित्रवतुवरेण्र्ं ा ु ा भगो दे वस्र् धीमफह सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ्॥ भावाथा: उि प्राणस्वरूप, दःखनाशक, िुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, दे वस्वरूप परमात्मा को हम अडतःकरण मं ु धारण करं । वह परमात्मा हमारी बुत्रद्ध को िडमागा मं प्रेररत करे । फहडद ू धमाग्रंथं मं उल्लेख हं की दे वी गार्िी िभी प्रकार क ज्ञान और त्रवज्ञान की जननी है । इिसलए तो स्जन े वेदं को िमस्त त्रवद्याओं का खजाना माना जाता हं , िारं वेदं को दे वी गार्िी क पुि माने जाते हं । र्फह कारण हं , े क दे वी गार्िी को वेदं की माता अथाात "वेदमाता" कहा गर्ा हं । े दे वी गार्िी क मडि क िार पद िे क्रमशः े े ॐ भूभवः स्वः िे ऋग्वेद की रिना हुई। तत्ित्रवतुवरेण्र्ं िे र्जुवेद की रिना हुई। भगोदे वस्र् धीमफह िे िामवेद की ा ा ा रिना हुई। और सधर्ो र्ोनः प्रिोदर्ात ् िे अथवावेद की रिना हुई हं ऐिा धमाग्रंथं मं उल्लेस्खत हं । पौरास्णक काल मं ही हमारे ज्ञानी ऋषी मुसनर्ं को ज्ञात हो गर्ा था की गार्िी दे वी िमस्त त्रवद्याओं की जननी हं । ऐिा माना जाता हं की िार वेदं िे ही िमस्त शास्त्र, दशान, ब्राह्मण ग्रडथ, आरण्र्क, िूि, उपसनषद्, पुराण, स्मृसत आफद का सनमााण हुआ हं । पौरास्णक माडर्ता हं की कालांतर मं इडहीं ग्रडथं मं वस्णात ज्ञान िे िमस्त सशल्प, वास्णज्र्, सशक्षा, रिार्न, वास्तु, िंगीत आफद ८४ कलाओं का आत्रवष्कार हुआ हं । र्फह कारण हं की दे वी गार्िी को िंिार क िमस्त ज्ञान- े त्रवज्ञान की जननी कहाँ जाता हं । स्जि प्रकार फकिी बीज क भीतर िंपूणा वृक्ष िस्डनफहत होता है , उिी प्रकार गार्िी े क 24 अक्षरं मं िंिार क िमस्त ज्ञान और त्रवज्ञान िस्डनफहत हं । र्ह िब गार्िी का ही अथा त्रवस्तार हं । े े वेदमाता गार्िी क जडम िे िंबंसधत त्रवसभडन माडर्ताएं प्रिसलत हं । े कछ जानकारो का मानना हं की वेदमाता गार्िी का जडम श्रावणी पूस्णामा को हुवा था इि सलर्े इि फदन को ु गार्िी जर्ंसत क रुप मं भी मनार्ा जाता हं । े कछ अडर् पोराणीक माडर्ताओं एवं धमा ग्रंथो मं उल्लेख हं की फहडदी पंिांग क ज्र्ैष्ठ महीने क शुक्ल पक्ष की ु े े एकादशी को मां गार्िी का प्राकटर् हुवा हं । कछ िमर् क पश्चर्ात इिी फदन ऋत्रष त्रवश्रासमि ने गार्िी मंि की रिना ु े की थी। ऐिी माडर्ता है फक इिी फदन वेदमाता गार्िी िाक्षात मं धरती पर अपने रूप मं प्रकट हुईं थीं। ज्ञान तथा वेदं का ज्ञान दे वी गार्िी िे ही प्रकट हुआ है । अडर् पौरास्णक माडर्ता क अनुिार कासताक शुक्ल पक्ष क षष्ठी क िूर्ाास्त और िप्तमी क िूर्ोदर् क मध्र् े े े े े वेदमाता गार्िी का जडम हुआ था। भले ही मां गार्िी क जडम फदन को लेकर त्रवसभडन लोक माडर्ता एवं शास्त्रं की े
  • 5. सभडनता िे अलग-अलग मत हो। लेफकन िभी ऋत्रषर्ं ने एक मत िे गार्िी मंि की मफहमा को स्वीकार फकर्ा हं । अथवावेद मं उल्लेख हं की गार्िी मंि क जप िे मनुष्र् की आर्ु, प्राण, शत्रि, कीसता, धन और ब्रह्मतेज मं वृत्रद्ध होती हं । े गार्िी मंि क िंदभा मं त्रवसभडन महापुरुषो क कथन िे समलते-जुलते असभमत हं महापुरुषो क कथन िे े े े आपको पररसित कराने हे तु इि अंक मं उिक अंश को त्रवसभडन स्रोत क माध्र्म िे िंलग्न करने का प्रर्ाि फकर्ा े े गर्ा हं स्जििे र्ह स्पष्ट है फक कोई ऋत्रष र्ा त्रवद्वान अडर् त्रवषर्ं मं िाहे अपना मतभेद रखते हं, पर गार्िी क बारे े मं उन िब मं िमान श्रद्धा थी और वे िभी अपनी उपािना मं उिका प्रथम स्थान रखते थे ! कछ त्रवद्वानो का कथन ु हं की शास्त्रं मं, ग्रंथं मं, स्मृसतर्ं मं, पुराणं मं गार्िी की मफहमा तथा िाधना पर प्रकाश िालने वाले िहस्रं श्लोक भरे पिे हं । इन िबका िंग्रह फकर्ा जाए, तो एक बिा भारी गार्िी पुराण बन िकता हं । िामाडर्तः गार्िी मडि की मफहमा एवं प्रभाव िे प्रार्ः हर फहडद ु धमा को मानने वाले लोग पररसित हं । गार्िी मंि को "गुरु मंि" क रुप मे जाना जाता है । क्र्ोफक फहडद ु धमा मं गार्िी मडि िभी मंिं मं िवोच्ि है और िबिे े प्रबल शत्रिशाली मंि हं । इि अंक मं अत्र्ंत िरल और असधक प्रभावी दै सनक गार्िी उपािना जो हर िाधारण िे िाधारण व्र्त्रि जो अथाात जो व्र्त्रि फकिी भी प्रकार क कमा-कांि र्ा पूजा पाठ को नहीं जानता हं र्ा जानते हो ओर उिे करने मं े अिमथा हो, ऐिे व्र्त्रि भी िरल गार्िी उपािना आिानी िे कर िक इि उद्दे श्र् िे इि अंक मं िलग्न करने का े प्रर्ाि फकर्ा गर्ा हं । क्र्ोफक गार्िी उपािना जीवन क हर स्स्थसत मं भि क सलए सनस्श्चत रूप िे फार्दे मंद होती हं । े े वैिे तो मां गार्िी की पूजा हे तु अनेको त्रवसध-त्रवधान प्रिलन मं हं लेफकन िाधारण व्र्त्रि जो िंपूणा त्रवसध-त्रवधान िे गार्िी का पूजन नहीं कर िकते वह व्र्त्रि र्फद गार्िी जी क पूजन का िरल त्रवसध-त्रवधान ज्ञात करले तो वहँ े सनस्श्चत रुप िे पूणा फल प्राप्त कर िकते हं । इिी उद्दे श्र् िे इि अंक मं पाठको क ज्ञान वृत्रद्ध क उद्दे श्र् िे मां गार्िी े े क पूजन की असत िरल शीघ्र फलप्रद त्रवसध, मंि, स्तोि इत्र्ाफद िे आपको पररसित कराने का प्रर्ाि फकर्ा हं । जो लोग े िरल त्रवसध िे मंि जप पूजन इत्र्ाफद करने मं भी अिमथा हं वहँ लोग श्री गार्िी जी क मंि-स्तोि इत्र्ाफद का श्रवण े कर क भी पूणा श्रद्धा एवं त्रवश्वाि रख कर सनस्श्चत ही लाभ प्राप्त कर िकते हं , र्हँ अनुभूत उपार् हं जो सनस्श्चत फल े प्रदान करने मं िमथा हं इि मं जरा भी िंिर् नहीं हं । इि अंक मं आप अपने कार्ा उद्दे श्र् की पूसता हे तु िरल िे िरल उपार्ं को कर पूणा िफलता प्राप्त कर िक इि उद्दे श्र् िे गार्िी मडि क त्रवलक्षण प्रर्ोग को इि अंक मं े े िलग्न करने का प्रर्ाि फकर्ा गर्ा हं । स्जिे िंपडन करक आप वेदमाता गार्िी की कृ पा प्राप्त कर अपने मनोरथं को े सनस्श्चत रुप िे पूणा कर िकते हं । आप िभी क मागादशान र्ा ज्ञानवधान क सलए गार्िी उपािना िे िंबंसधत उपर्ोगी जानकारी भी इि अंक मं े े िंकसलत की गई हं । िाधक एवं त्रवद्वान पाठको िे अनुरोध हं , र्फद दशाार्े गए मंि, स्तोि इत्र्ादी क िंकलन, प्रमाण े पढ़ने, िंपादन मं, फिजाईन मं, टाईपींग मं, त्रप्रंफटं ग मं, प्रकाशन मं कोई िुफट रह गई हो, तो उिे स्वर्ं िुधार लं र्ा फकिी र्ोग्र् गुरु र्ा त्रवद्वान िे िलाह त्रवमशा कर ले । क्र्ोफक त्रवद्वान गुरुजनो एवं िाधको क सनजी अनुभव त्रवसभडन अनुष्ठा े मं भेद होने पर पूजन त्रवसध एवं जप त्रवसध मं सभडनता िंभव हं । सिंतन जोशी
  • 6. 6 मई 2012 गार्िी िमस्त त्रवद्याओं की जननी हं  सिंतन जोशी ॐ भूभवः स्वः तत्ित्रवतुवरेण्र्ं ा ु ा उिी प्रकार गार्िी क 24 अक्षरं मं िंिार क िमस्त े े भगो दे वस्र् धीमफह सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ्॥ ज्ञान और त्रवज्ञान िस्डनफहत हं । र्ह िब गार्िी का ही अथा त्रवस्तार हं । फहडद ू धमाग्रंथं मं उल्लेख हं की दे वी गार्िी िभी मंि की परीभाषा: प्रकार क ज्ञान और त्रवज्ञान की जननी है । इिसलए तो े मंि उि ध्वसन को कहते है जो अक्षर(शब्द) एवं अक्षरं स्जन वेदं को िमस्त त्रवद्याओं का खजाना माना जाता हं , (शब्दं) क िमूह िे बनता है । िंपूणा ब्रह्माण्ि मं दो प्रकार े त्रवद्वानो क मतानुशार िभी वेद दे वी गार्िी की े फक ऊजाा िे व्र्ाप्त है , स्जिका हम अनुभव कर िकते है , व्र्ाख्र्ा हं । र्फह कारण हं , क दे वी गार्िी को वेदं की े वह ध्वसन उजाा एवं प्रकाश उजाा है । इि क अलावा े माता अथाात "वेदमाता" कहा गर्ा हं । िारं वेदं को दे वी ब्रह्माण्ि मं कछ एिी ऊजाा भी व्र्ाप्त होती है स्जिे ना ु गार्िी क पुि माने जाते हं । े हम दे ख िकते है नाही िुन िकते है नाहीं अनुभव कर शास्त्रोि मत िे जब ब्रह्माजी ने एक-एक करके िकते है । आध्र्ास्त्मक शत्रि इनमं िे कोई भी एक प्रकार की ऊजाा दिरी उजाा क िहर्ोग क त्रबना िफक्रर् नहीं ू े े अपने िारं मुख िे गार्िी क िार अलग-अलग िरण की े होती। मंि सिर् ध्वसनर्ाँ नहीं हं स्जडहं हम कानं िे ा व्र्ाख्र्ा की थी उि वि िारं वेदं का उद्गम माना जाता िुनते िकते हं , ध्वसनर्ाँ तो माि मंिं का लौफकक स्वरुप हं र्ा िार वेद प्रकट हुए हं । भर हं स्जिे हम िुन िकते हं । ध्र्ान की उच्ितम दे वी गार्िी क मडि क िार पद िे क्रमशः े े अवस्था मं व्र्त्रि का आध्र्ास्त्मक व्र्त्रित्व पूरी तरह िे ॐ भूभवः स्वः िे ऋग्वेद की रिना हुई। तत्ित्रवतुवरेण्र्ं ा ा ब्रह्माण्ि की अलौफकक शत्रिओ क िाथ मे एकाकार हो े िे र्जुवेद की रिना हुई। भगोदे वस्र् धीमफह िे िामवेद ा जाता है और त्रवसभडन प्रकारी की शत्रिर्ां प्राप्त होने की रिना हुई। और सधर्ो र्ोनः प्रिोदर्ात ् िे अथवावेद लगती हं । प्रािीन ऋत्रषर्ं ने इिे शब्द-ब्रह्म की िंज्ञा दी की रिना हुई हं ऐिा धमाग्रंथं मं उल्लेस्खत हं । वह शब्द जो िाक्षात ् ईश्वर हं ! उिी िवाज्ञानी शब्द-ब्रह्म िे पौरास्णक काल मं ही हमारे ज्ञानी ऋषी मुसनर्ं एकाकार होकर व्र्त्रि को मनिाहा ज्ञान प्राप्त कर ने मे को ज्ञात हो गर्ा था की गार्िी दे वी िमस्त त्रवद्याओं की िमथा हो िकता हं । जननी हं । ऐिा माना जाता हं की िार वेदं िे ही िमस्त हर मंिं मं कई त्रवशेष प्रकार की शत्रि सनफहत शास्त्र, दशान, ब्राह्मण ग्रडथ, आरण्र्क, िूि, उपसनषद्, होती हं । मंिं क अक्षर शत्रि बीज माने जाते हं । जैिे े पुराण, स्मृसत आफद का सनमााण हुआ हं । िभी त्रवसशष्ट मंिं मं उनक शब्दं मं त्रवशेष प्रकार की े पौरास्णक माडर्ता हं की कालांतर मं इडहीं ग्रडथं शत्रि तो होती है , पर फकिी-फकिी मडि मं उन शब्दं का मं वस्णात ज्ञान िे िमस्त सशल्प, वास्णज्र्, सशक्षा, कोई त्रवशेष महत्वपूणा अथा नहीं होता। लेफकन गार्िी रिार्न, वास्तु, िंगीत आफद ८४ कलाओं का आत्रवष्कार मंि मं ऐिा नहीं हं । गार्िी मंि क हर एक-एक अक्षर मं े अनेक प्रकार क गूढ़ रहस्र्मर् तत्त्व सछपे हुए हं । ऐिा े हुआ हं । र्फह कारण हं की दे वी गार्िी को िंिार के माना जाता हं की िमस्त लोक मं प्रिसलत ६४ कलाओं, िमस्त ज्ञान-त्रवज्ञान की जननी कहाँ जाता हं । स्जि ६ शास्त्रं, ६ दशानं एवं ८४ त्रवद्याओं क रहस्र् प्रकासशत े प्रकार फकिी बीज क भीतर िंपूणा वृक्ष िस्डनफहत होता है , े करने वाले िभी अथा गार्िी क हं । े
  • 7. 7 मई 2012 गार्िी मंि का पररिर्  सिंतन जोशी िामाडर्तः गार्िी मडि की मफहमा एवं प्रभाव िे गार्िी मंि का अथा त्रवस्तृत शब्दो मं प्रार्ः हर फहडद ु धमा को मानने वाले लोग पररसित हं । ओम - है िवाशत्रिमान परमेश्वर भूर आध्र्ास्त्मक ऊजाा का अवतार गार्िी मंि को "गुरु मंि" क रुप मे जाना जाता है । े - भव - दख की त्रवनाशक ु क्र्ोफक फहडद ु धमा मं गार्िी मडि िभी मंिं मं िवोच्ि स्वह - खुशी क अवतार े है और िबिे प्रबल शत्रिशाली मंि हं । तत ् - जो (भगवान का िंकत) े ित्रवतुर - उज्ज्वल, िमकीले, िूर्ा की तरह ॐ भूभवः स्वः तत्ि त्रवतुवरेण्र्ं। ा ा वारेण्र्ं - उत्तम भगोदे वस्र् धीमफह सधर्ो र्ोनः प्रिोदर्ात॥ भगो - पापं का नाशक दे वस्र् - परमात्मा भावाथा: उि प्राणस्वरूप, दःखनाशक, िुखस्वरूप, श्रेष्ठ, ु धीमफह - मुजे प्रासप्त हो सधर्ो - एसि बुत्रद्ध तेजस्वी, पापनाशक, दे वस्वरूप परमात्मा को हम र्ो - जो अडतःकरण मं धारण करं । वह परमात्मा हमारी बुत्रद्ध को नह - हमे िडमागा मं प्रेररत करे । प्रिोदर्ात - प्रेरणा दे दस्क्षणावसता शंख आकार लंबाई मं फाईन िुपर फाईन स्पेशल आकार लंबाई मं फाईन िुपर फाईन स्पेशल 0.5" ईंि 180 230 280 4" to 4.5" ईंि 730 910 1050 1" to 1.5" ईंि 280 370 460 5" to 5.5" ईंि 1050 1250 1450 2" to 2.5" ईंि 370 460 640 6" to 6.5" ईंि 1250 1450 1900 3" to 3.5" ईंि 460 550 820 7" to 7.5" ईंि 1550 1850 2100 हमारे र्हां बिे आकार क फकमती व महं गे शंख जो आधा लीटर पानी और 1 लीटर पानी िमाने की क्षमता वाले े होते हं । आपक अनुरुध पर उपलब्ध कराएं जा िकते हं । े  स्पेशल गुणवत्ता वाला दस्क्षणावसता शंख पूरी तरह िे िफद रं ग का होता हं । े  िुपर फाईन गुणवत्ता वाला दस्क्षणावसता शंख फीक िफद रं ग का होता हं । े े  फाईन गुणवत्ता वाला दस्क्षणावसता शंख दं रं ग का होता हं । GURUTVA KARYALAY Call us: 91 + 9338213418, 91+ 923832878 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
  • 8. 8 मई 2012 गार्िी मंि क िंदभा मं महापुरुषं क विन े े  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी िभी ऋत्रषर्ं ने एक मत िे गार्िी मंि की वाला अडर् कोई मडि मफहमा को स्वीकार फकर्ा हं । स्वगा और पृथ्वी पर नहीं अथवावेद मं उल्लेख हं की गार्िी मंि क जप िे े हं । जैिे गंगा क िमान े मनुष्र् की आर्ु, प्राण, शत्रि, कीसता, धन और ब्रह्मतेज मं कोई तीथा नहीं, कशव िे े वृत्रद्ध होती हं । श्रेष्ठ कोई दे व नहीं। गार्िी िे श्रेष्ठ मंि न त्रवश्वासमि जी का कथन हं : हुआ हं , न आगे होगा। गार्िी मंि िे बढ़कर गार्िी मंि जप लेने पत्रवि करने वाला और कोई वाला िमस्त त्रवद्याओं का मंि नहीं हं । उडहं नी वेत्ता, श्रेष्ठ हो जाता हं । जो फद्वज गार्िी मंि की मफहमा मं अथाात ब्राह्मण गार्िी परार्ण नहीं, वह वेदं का पारं गत कहां हं की जो मनुष्र् होते हुए भी शूद्र क िमान है , अडर्ि फकर्ा हुआ उिका े सनर्समत रूप िे तीन वषा श्रम व्र्था हं । जो मनुष्र् गार्िी को नहीं जानता, ऐिा तक गार्िी जाप करता हं , व्र्त्रि ब्राह्मणत्व िे च्र्ुत अथाात बरख़ास्त और पापर्ुि वह सनस्श्चत रुप िे ईश्वर हो जाता हं । को प्राप्त करता हं । जो फद्वज अथाात ब्राह्मण पाराशर जी का कथन हं दोनं िंध्र्ाओं मं गार्िी मंि जपता हं , वह िमस्त जप, िूिं तथा वेद मंिं मं गार्िी मंि परम श्रेष्ठ िमस्त वेद को पढ़ने क िमान फल को प्राप्त करता हं । े हं । वेद और गार्िी की मनुष्र् अडर् कोई अनुष्ठान र्ा िाधना करे र्ा न करे , तुलना मं गार्िी का कवल गार्िी मंि क जप िे वहँ िभी सित्रद्ध प्राप्त कर े े पलिा भारी हं । िकता हं । प्रसतफदन एक हजार जप करने वाला मनुष्र् भत्रिपूवक ा गार्िी का ू िमस्त पापं िे छट जाता हं । त्रवश्वासमि जी का र्हाँ तक जप करने वाला मनुष्र् कहना हं की जो फद्वज अथाात ब्राह्मण गार्िी की उपािना मुि होकर पत्रवि बन नहीं करता, वह सनडदा का पाि हं । जाता हं । वेद, शास्त्र, पुराण, इसतहाि पढ़ लेने र्ोसगराज र्ाज्ञवल्क्र् जी का कथन हं पर भी जो गार्िी िे वेदं का िार उपसनषद हं , उपसनषद का िार हीन है , उिे ब्राह्मण नहीं व्र्ाहृसतर्ं िफहत गार्िी हं । गार्िी वेदं की जननी है , िमझना िाफहर्े। पापं का नाश करने वाली है , इििे असधक पत्रवि करने
  • 9. 9 मई 2012 शंख ऋत्रष का कथन हं सनमाल करती है , नरक क िमान िमुद्र मं सगरते हुए को हाथ पकि कर े गार्िी रूपी ब्रह्म गंगा बिाने वाली गार्िी ही हं । उििे उत्तम तत्व स्वगा और िे आत्मा पत्रवि होती पृथ्वी पर कोई नहीं हं । गार्िी का ज्ञाता सनस्िंदेह स्वगा हं । जो गार्िी छोिकर को प्राप्त करता हं । अडर् उपािनार्ं करता है , वह पकवान छोिकर सभक्षा माँगने शौनक ऋत्रष का कथन हं वाले क िमान मूखा े अडर् उपािनार्ं करं िाहे न करं , कवल गार्िी े हं । का्र् िफलता जप िे ही फद्वज (ब्राह्मण) जीवन मुि हो जाता हं । व्र्त्रि तथा तप की वृत्रद्ध के िमस्त िांिाररक और पारलौफकक िुखं को प्राप्त करता सलर्े गार्िी िे श्रेष्ठ और कछ नहीं हं । ु हं । िंकट क िमर् दि हजार जप करने िे त्रवपत्रत्त का े सनवारण होता हं । भारद्वाज ऋत्रष का कथन हं ब्रह्मा आफद दे वता भी गार्िी का अत्रि मुसन का कथन हं जप करते हं , वह ब्रह्म दे वी गार्िी आत्मा का िाक्षात्कार कराने वाली हं । परम शोधन करने वाली हं । अनुसित काम करने वालं के उिक प्रताप िे कफठन दोष े ू दा गुण गार्िी क कारण छट ु े और दा गुणं का पररमाजान ु जाते हं । गार्िी िे रफहत अथाात िर्ाई हो जाती हं । व्र्त्रि शुद्र िे भी अपत्रवि हं । जो मनुष्र् गार्िी तत्त्व को भली प्रकार िे िमझ िरक ऋत्रष का कथन हं लेता है , उिक सलए इि े जो मनुष्र् ब्रह्मिर्ापूवक ा िंिार मं कोई िुख शेष गार्िी की उपािना करता है और नहीं रह जाता हं । आँवले क ताजे फलं का िेवन े नारदजी का कथन हं करता है , वह मनुष्र् दीघाजीवी होता गार्िी भत्रि का ही स्वरूप हं । जहाँ भत्रि रूपी गार्िी है , हं । वहाँ श्रीनारार्ण का सनवाि होने मं कोई िंदेह नहीं करना िाफहर्े । वसशष्ठ जी का कथन हं मडदमसत, कमागागामी और अस्स्थरमसत भी गार्िी क ु े महत्रषा व्र्ाि जी का कथन हं स्जि प्रकार पुष्प का िार शहद, दध का िार घृत प्रभाव िे उच्ि पद को प्राप्त करते हं , फफर िद् गसत होना ू है , उिी प्रकार िमस्त वेदं का िार गार्िी हं । सिद्ध की सनस्श्चत हं । जो पत्रविता और स्स्थरतापूवक गार्िी की ा हुई गार्िी कामधेनु क िमान हं । गंगा शरीर क पापं को े े उपािना करते है , वे आत्म-लाभ प्राप्त करते हं ।
  • 10. 10 मई 2012 जगद्गरु शंकरािार्ा जी का कथन हं ु महामना मदनमोहन मालवीर् जी का कथन हं गार्िी की मफहमा का वणान ऋत्रषर्ं ने जो अमूल्र् रत्न हमं करना मनुष्र् की िामाथ्र् फदर्े हं , उनमं िे एक क बाहर हं । बुत्रद्ध का े अनुपम रत्न गार्िी हं । होना इतना बिा कार्ा है , गार्िी िे बुत्रद्ध पत्रवि स्जिकी िमता िंिार के होती हं । ईश्वर का प्रकाश और फकिी काम िे नहीं आत्मा मं आता हं । इि हो िकती । आत्म-प्रासप्त प्रकाश मं अिंख्र् करने की फदव्र् दृत्रष्ट आत्माओं को भव-बंधन स्जि बुत्रद्ध िे प्राप्त होती िे िाण समला हं । गार्िी है , उिकी प्रेरणा गार्िी द्वारा मं ईश्वर परार्णता क भाव े होती हं । गार्िी आफद मंि हं । उिका अवतार उत्पडन करने की शत्रि हं । िाथ ही वह दररतं को नष्ट करने और ऋत क असभवधान क सलर्े ु े े भौसतक अभावं को दर करती हं । गार्िी की उपािना ू हुआ हं । ब्राह्मणं क सलर्े तो अत्र्डत आवश्र्क हं । जो ब्राह्मण े गार्िी जप नहीं करता, वह अपने कताव्र् धमा को छोिने महात्मा गाँधी जी का कथन हं का अपराधी होता हं । गार्िी मंि सनरं तर जप रोसगर्ं को अच्छा करने और आत्मा रवीडद्र टै गोर जी का कथन हं की उडनसत क सलर्े उपर्ोगी े भारतवषा को जगाने वाला जो मंि हं । गार्िी का स्स्थर सित्त है , वह इतना िरल है फक एक और शाडत हृदर् िे फकर्ा ही श्वाि मं उिका उच्िारण हुआ जप आपात्तकाल मं फकर्ा जा िकता हं । वह है - िंकटं को दर ू करने का गार्िी मंि । इि पुनीत मंि प्रभाव रखता हं । का अभ्र्ाि करने मं फकिी लोकमाडर् सतलक जी का कथन हं प्रकार के ताफकक ा ऊहापोह, स्जि बहुमुखी दािता क बंधनं मं े फकिी प्रकार के मतभेद अथवा भारतीर् प्रजा जकिी हुई है , फकिी प्रकार क बखेिे की गुंजाइश नहीं हं । े उिक सलर्े आत्मा क अडदर े े प्रकाश उत्पडन होना िाफहर्े, र्ोगी अरत्रवडदजी स्जििे ित ् और अित ् का र्ोगी अरत्रवडदजी ने त्रवसभडन स्थानो पर जगह गार्िी त्रववेक हो, कमागा को छोिकर ु जप करने का सनादेश फकर्ा हं । उडहंने बतार्ा फक गार्िी श्रेष्ठ मागा पर िलने की प्रेरणा मं ऐिी शत्रि िस्डनफहत है , जो महत्त्वपूणा कार्ा कर समले, गार्िी मंि मं र्ही भावना िकती हं । उडहंने कईर्ं को िाधना क तौर पर गार्िी े त्रवद्यमान हं । का जप बतार्ा हं ।
  • 11. 11 मई 2012 स्वामी रामकृ ष्ण परमहं ि जी का कथन हं हं । स्जि पर परमात्मा प्रिडन होते हं , उिे िद् बुत्रद्ध प्रदान मं लोगं िे कहता हूँ फक ल्बी करते हं । िद् बुत्रद्ध िे ित ् मागा िाधना करने की उतनी पर प्रगसत होती है और ित ् आवश्र्कता नहीं हं । इि कमा िे िब प्रकार क िुख े छोटी-िी गार्िी की िाधना समलते हं । जो ित ् की ओर करक दे खं । गार्िी का े बढ़ रहा है , उिे फकिी प्रकार जप करने िे बिी-बिी क िुख की कमी नहीं रहती े सित्रद्धर्ाँ समल जाती हं । र्ह । गार्िी िद् बुत्रद्ध का मंि हं । मंि छोटा है , पर इिकी शत्रि इिसलर्े उिे मंिं का मुकटमस्ण ु बिी भारी हं । कहा हं । स्वामी रामतीथा जी का कथन हं स्वामी सशवानंदजी जी का कथन हं राम को प्राप्त करना िबिे बिा ब्राह्ममुहूता मं गार्िी का जप काम हं । गार्िी का असभप्रार् करने िे सित्त शुद्ध होता है बुत्रद्ध को काम-रुसि िे हटाकर और हृदर् मं सनमालता आती राम-रुसि मं लगा दे ना हं । हं । शरीर नीरोग रहता है , स्जिकी बुत्रद्ध पत्रवि होगी, वही स्वभाव मं नम्रता आती है , राम को प्राप्त कर िकगा । े बुत्रद्ध िूक्ष्म होने िे दरदसशाता ू गार्िी पुकारती है फक बुत्रद्ध मं बढ़ती है और स्मरण शत्रि इतनी पत्रविता होनी िाफहर्े फक वह का त्रवकाि होता हं । कफठन राम को काम िे बढ़कर िमझे । प्रिंगं मं गार्िी द्वारा दै वी िहार्ता समलती हं । उिक द्वारा े महत्रषा रमण जी का कथन हं आत्म-दशान हो र्ोग त्रवद्या क अडतगात मंि त्रवद्या े िकता हं । बिी प्रबलत हं । मंिं की शत्रि उपरोि महापुरुषो के कथन िे समलते-जुलते िे अद्भत िफलतार्ं समलती हं ू असभमत प्रार्ः िभी त्रवद्वानो क हं । इििे स्पष्ट है फक े कोई ऋत्रष र्ा त्रवद्वान अडर् त्रवषर्ं मं िाहे अपना मतभेद । गार्िी ऐिा मंि है , स्जििे रखते हं, पर गार्िी क बारे मं उन िब मं िमान श्रद्धा े आध्र्ास्त्मक और भौसतक दोनं थी और वे िभी अपनी उपािना मं उिका प्रथम स्थान प्रकार क लाभ समलते हं । े रखते थे ! कछ त्रवद्वानो का कथन हं की शास्त्रं मं, ग्रंथं ु मं, स्मृसतर्ं मं, पुराणं मं गार्िी की मफहमा तथा िाधना स्वामी त्रववेकानंद जी का कथन हं पर प्रकाश िालने वाले िहस्रं श्लोक भरे पिे हं । इन राजा िे वही वस्तु माँगी जानी िाफहर्े, जो उिक गौरव क े े िबका िंग्रह फकर्ा जाए, तो एक बिा भारी गार्िी पुराण अनुकल हो । परमात्मा िे माँगने र्ोग्र् वस्तु िद् बुत्रद्ध ू बन िकता हं ।
  • 12. 12 मई 2012 गार्िी मडि क त्रवलक्षण प्रर्ोग े  सिंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी मूल मंि: िंतान की प्रासप्त हे तु ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं । ुा ा गार्िी मंि क आगे ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं बीज मंि लगाकर े भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥ जप करने िे िंतान की प्रासप्त होती हं । त्रवसध : मंि: प्रसतफदन प्रातः काल स्नानाफद िे सनवृत्त होकर ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं । ुा ा भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥ स्वच्छ वस्त्र धारण कर उि मडि की एक माला जप करं । त्रवद्वानो क मतानुशार गार्िी मडि को 108 बार े भूत-प्रेत इत्र्ाफद उपद्रवं क नाश हे तु े पढ़कर स्वच्छ जल को असभमंत्रित कर क पीने िे िाधक े गार्िी मंि क आगे ॐ ह्रीं क्लीं बीज मंि लगाकर जप े क िमस्त रोग-शोक-भर् दर होते हं । े ू करने िे भूत-प्रेत, तंि बाधा, िोट, मारण, मोहन, गार्िी मडि िे भात (पक हुए िावल) मं घी े उच्िाटन, वशीकरण, स्तंभन, कामण-टू मण, इत्र्ाफद समलाकर 108 बार त्रवसधवत होम करने िे िाधक को उपद्रवं का नाश होता हं । धमा, अथा, काम और मोक्ष की प्रासप्त होती हं । मंि: ॐ ह्रीं क्लीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं । ुा ा लक्ष्मी प्रासप्त हे तु भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥ गार्िी मंि क आगे ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं बीज मंि लगाकर जप े करने िे माँ लक्ष्मी प्रिडन होती हं । अिाध्र् रोगं क सनवारण हे तु े मंि: गार्िी मंि क आगे ॐ ह्रीं बीज मंि लगाकर जप करने े ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं । ुा ा िे अिाध्र् रोग एवं परे शानीर्ं िे मुत्रि समलती हं । भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥ मंि: ॐ ह्रीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं । ुा ा ज्ञान प्रासप्त हे तु भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥ गार्िी मंि क पीछे ॐ ऐं क्लीं औ ं बीज मंि लगाकर े जप करने िे मूख-जि िे जि व्र्त्रि भी त्रवद्वान हो जाता ा धन-िंपत्रत्त की वृत्रद्ध हे तु हं । गार्िी मंि क आगे ॐ आं ह्रीं क्लीं बीज मंि लगाकर े मंि: जप करने िे धन-िंपत्रत्त की वृत्रद्ध एवं रक्षा होती हं । ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं । भगो दे वस्र् धीमफह । ुा ा मंि: सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥ ॐ ऐं क्लीं औ ं ॥ ॐ आं ह्रीं क्लीं ॐ भूभवस्वः । तत ित्रवतुवरेण्र्ं । ुा ा भगो दे वस्र् धीमफह । सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ॥
  • 13. 13 मई 2012 गार्िी मडि क अडर् अनुभूत प्रर्ोग: े ज्वर सनवारण हे तु र्फद ज्वर िे पीफित व्र्त्रि को उसित इलाज़ एवं दवाईर्ं प्राण भर् सनवारण हे तु िे राहत नहीं समल रही हो, तो आम क पत्तं को गार् क े े र्फद व्र्त्रि क प्राण को फकिी भी कारण वश महान े दध मं दबाकर गार्िी मडि पढ़कर 108 बार हवन करने ू ु िंकट हो, ऐिी अवस्था मं शरीर का कण्ठ तक र्ा जाँघ िे िभी प्रकार क ज्वर शीघ्र दर होने लगते हं और रोगी े ू तक का फहस्िा पानी (पत्रवि नदी, जलाशर् र्ा तालाब) जल्दी स्वस्थ हो जाता हं । मं िू बा रहे इि प्रकार खिे होकर सनत्र् 108 बार गार्िी मडि जपने िे प्राण की रक्षा होती हं , ऐिा त्रवद्वानो का राज रोग सनवारण हे तु कथन हं । र्फद कोई व्र्त्रि राज रोग (अथाात: ऐिा रोग स्जििे ू पीछे छटना अिंभव हो, अिाध्र् रोग)िे पीफित हो, तो ग्रह-बाधा सनवारण हे तु मीठा वि को गार् क दध मं दबाकर गार्िी मडि पढ़कर े ू ु र्फद व्र्त्रि को ग्रह जसनत पीिाओं िे कष्ट हो, तो 108 बार हवन करने िे राज रोग मं राहत होने लगती हं शसनवार क फदन पीपल क वृक्ष क नीिे बैठ कर गार्िी े े े और रोगी जल्दी स्वस्थ हो ने लगता हं । मडि का जप करने िे ग्रहं क बुरे प्रभाव िे रक्षा होती े हं । र्ह पूणतः अनुभत प्रर्ोग हं । ा ू कष्ठ रोग सनवारण हे तु ु मृत्र्ु भर् सनवारण हे तु र्फद कोई व्र्त्रि कष्ठ रोग िे पीफित हो, तो शंख पुष्पी क ु े  र्फद व्र्त्रि की कुंिली मं अल्प मृत्र्ु र्ोग का पुष्पं िे गार्िी मडि पढ़कर 108 बार हवन करने िे सनमााण हो रहा हो, तो गुरुसि क छोटे टु किे करक े े कष्ठ रोग दर होता हं । ु ू गार् क दध मं दबाकर गार्िी मडि पढ़कर प्रसतफदन े ू ु 108 बार हवन करने िे अकाल मृत्र्ु र्ोग का उडमाद रोग सनवारण हे तु सनवारण होता है । इिे मृत्र्ुंजर् हवन भी कहते हं । र्फद घर का कोई िदस्र् उडमाद रोग िे पीफित हो, तो (गुरुसि को अडर् भाषाओं मं गुलवेल, मधुपणी, गूलर की लकिी और फल िे गार्िी मडि पढ़कर 108 नीमसगलो, अमृतवेल, अमृतवस्ल्ल आफद नाम िे भी बार हवन करने िे उडमाद रोग का सनवारण होता हं । जाना जाता हं ) को शमी वृक्ष की लकिी मं गार् का शुद्ध घी, जौ, गार् दध समलाकर 7 फदन तक सनर्समत ू मधुमेह (िार्त्रबटीज) रोग सनवारण हे तु गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन करने िे र्फद व्र्त्रि मधुमेह रोग िे पीफित हो, तो ईख क रि मं े अकाल मृत्र्ु र्ोग दर होता है । ू मधु समलाकर गार्िी मडि पढ़कर 108 बार हवन करने  मधु, गार् का शुद्ध घी, गार् दध समलाकर 7 फदन ू िे मधुमेह रोग मं लाभ होता हं । तक सनर्समत गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन करने िे अकाल मृत्र्ु र्ोग दर होता है । ू  बरगद की िसमधा मं बरगद की हरी टहनी पर गार् बवािीर रोग सनवारण हे तु का शुद्ध घी और गार् क दध िब का समश्रण कर 7 े ू र्फद व्र्त्रि बवािीर रोग िे पीफित हो, तो गार् क दही, े फदन तक सनर्समत गार्िी मडि जपते हुए 108 बार दध व घी तीनो को समलाकर गार्िी मडि पढ़कर 108 ू हवन करने िे अकाल मृत्र्ु र्ोग दर होता है । ू बार हवन करने िे बवािीर रोग मं लाभ होता हं ।
  • 14. 14 मई 2012 दमा रोग सनवारण हे तु पीलाने िे अथवा िंबंसधत स्थान पर असभमंत्रित जल का र्फद व्र्त्रि दमा रोग िे पीफित हो, तो अपामागा, गार् सछटकाव करने िे भूताफद दोष दर होता है । ू का शुद्ध घी समलाकर गार्िी मडि पढ़कर 108 बार हवन करने िे दमा रोग मं लाभ होता हं । िवा िुख प्रासप्त हे तु िभी प्रकार िे िुखं की प्रासप्त क सलए, गार्िी मडि े राष्ट्र भर् सनवारण हे तु जपते हुए 108 बार ताजे़ फलं िे हवन करने िे िवा ू र्फद फकिी राजा, नेता प्रजा र्ा दे श पर फकिी प्रकार िे िुखं की प्रासप्त होती हं । शिु पक्ष िे आक्रमण का अंदेशा हो र्ा फकिी प्रकार िे कदरती िंकट (त्रवद्युत्पात, अस्ग्न आफद) का भर् हो, तो ु लक्ष्मी की प्रासप्त हे तु बंत की लकिी क छोटे -छोटे टू किे ़ कर गार्िी मडि े  लाल कमल पुष्प अथवा िमेली क पुष्प और शासल े पढ़कर108 बार हवन करने िे राष्ट्र भर् का सनवारण होता िावल (िुगंसधत िावल र्ा मीठे िावल र्ा लाल हं । अक्षत) िे गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन करने िे लक्ष्मी की प्रासप्त होती हं । असनष्टकारी दोष सनवारण हे तु  बेल क छोटे -छोटे टु किे करक त्रबल्व, पुष्प, फल, घी, े े र्फद फकिी फदशा, शिु त्रवशेष र्ा पंि तत्व िे िंबंसधत खीर को समलाकर हवन िामग्री बनाकर, त्रबल्व की दोष की आशंका हो, तो 21 फदन तक सनत्र् गार्िी मडि लकिी िे गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन का करं , जप की िमासप्त वाले फदन स्जि फदशा मं दोष करने िे लक्ष्मी की प्रासप्त होती हं । र्ा शिु हो उि फदशा मं समट्टी का ढे ला असभमंत्रित करक फक ने िे दोष दर होता हं । े ं ू त्रवजर् प्रासप्त हे तु र्फद फकिी िे त्रबना फकिी कारण िे िरकारी लोगं र्ा शारीररक व्र्ासध सनवारण हे तु प्रिािनीर् िे अनावश्र्क वाद-त्रववाद िल रहा हो, तो र्फद शरीर क फकिी अंग मं व्र्ासध र्ा पीिा हो, तो े मदार की लकिी मं मदार क ताजे पि गार् का शुद्ध घी े आत्म भाव एवं पूणा श्रद्धा िे गार्िी मडि का जप करते समलाकर गार्िी मडि जपते हुए 108 बार हवन करने िे हुऐ कशा पर फक मार कर शरीर क उि अंग र्ा फहस्िी ु ूँ े त्रवजर् की प्रासप्त होती हं । का स्पशा करने िे िभी प्रकार क रोग, त्रवकार, त्रवष, े आफद नष्ट हो जाते हं । .नोटः- त्रवशेष लाभ की प्रासप्त हे तु फकिी भी प्रर्ोग क करने िे पूवा कछ फदन सनस्श्चत िंख्र्ा े ु भूत-प्रत व्र्ासध सनवारण हे तु मं 1, 3, 5, 7, 11, 21 र्था िंभव जप करने िे र्फद व्र्त्रि को भूत-प्रेत आफद बाधा िे पीिा हो र्ा कोई प्रर्ोग मं शीध्र लाभ की प्रासप्त होती हं । जप के स्थान त्रवशेष पर भूत-प्रेत आफद क्षूद्र जीवं का जमाविा िाथ प्रसतफदन दशांश हवन करे अथवा दशांश की हो, तो ताँबं क कलश मं जल भरकर गार्िी मडि का े िंख्र्ा क असधक जप करं । े जप करते हुऐ उिमं फक मार कर जल को असभमंत्रित ूँ करले फफर उि व्र्त्रि पर जल सछटकने िे र्ा उिे ***
  • 15. 15 मई 2012 त्रवसभडन गार्िी मडि  सिंतन जोशी,  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी ॐ भूभवस्वः । तत ् ित्रवतुवरेण्र्ं । ुा ा Om bhur bhuvah svah गार्िी दे वी मडि Tat savitur vareniyam भगो दे वस्र् धीमफह । Bhargo devasya dheemahee सधर्ो र्ो नः प्रिोदर्ात ् ॥ Dhiyo yo nah prachodayat. ॐ सगररजार्ै त्रवद्महे , Om Girijayai Vidhmahe दगाा गार्िी मडि ु सशव त्रप्रर्ार्ै धीमफह, Shiv Priyayai Dheemahee तडनो दगाा प्रिोदर्ात ्।। Tanno Durgaya Prachodayat. ु ॐ कात्र्ार्डर्ै त्रवद्महे , Om Katyayanayai Vidhmahe कात्र्ार्नी गार्िी मडि कडर्ा कमारर ि धीमफह, ु Kanya Kumari cha Dheemahee तडनो दगाा प्रिोदर्ात ्।। Tanno Durgaya Prachodayat. ु ॐ महालाक्ष्मर्े त्रवद्महे , Om Mahalakshmaye Vidhmahe लक्ष्मी गार्िी मडि त्रवष्णु पत्नी ि धीमफह Vishnu Pathniyai cha Dheemahee तडनो लक्ष्मी:प्रिोदर्ात। Tanno Lakshmi Prachodayat. ॐ महालाक्ष्मर्े त्रवद्महे , Om Mahalakshmaye Vidhmahe लक्ष्मी गार्िी मडि त्रवष्णु त्रप्रर्ार् धीमफह Vishnu Priyay Dheemahee तडनो लक्ष्मी:प्रिोदर्ात। Tanno Lakshmi Prachodayat. ॐ वाग दे व्र्ै त्रवद्महे , Om Vag devyai Vidhmahe िरस्वती गार्िी मडि काम राज्र्ा धीमफह तडनो िरस्वती Kam Rajya Dheemahee :प्रिोदर्ात। Tanno Saraswati Prachodayat. ॐ जनक नंफदडर्े त्रवद्महे , Om Janaka Nandinye Vidhmahe िीता गार्िी मडि भुसमजार् धीमफह Bhumijaya Dheemahee तडनो िीता :प्रिोदर्ात। Tanno Sita Prachodayat . Om Vrishabhanu jayai Vidhmahe ॐ वृष भानु: जार्ै त्रवद्महे , फक्रस्रप्रर्ार् राधा गार्िी मडि Krishna priyaya Dheemahee धीमफह तडनो राधा :प्रिोदर्ात। Tanno Radha Prachodayat. ॐ श्री तुल्स्र्े त्रवद्महे , त्रवश्नुत्रप्रर्ार् Om Tulasyai Vidhmahe तुलिी गार्िी मडि Vishnu priyayay Dheemahee धीमफह तडनो वृंदा: प्रिोदर्ात। Tanno Brindah Prachodayat. ॐ पृथ्वी दे व्र्ै त्रवद्महे , िहस्र मूरतर्ै Om Prithivi devyai Vidhmahe पृथ्वी गार्िी मडि Sahasra murthaye Dheemahee धीमफह तडनो पृथ्वी :प्रिोदर्ात। Tanno Prithvi Prachodayat. ॐ पर्नडिार् त्रवद्महे , महा हं िार् Om Param Hansay Vidmahe हं ि गार्िी मडि maha hanasay dheemahee tanno धीमफह तडनो हं ि: प्रिोदर्ात। hansh prachodyat.